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जमानत, परोल और फरलॉ का फंडा

परोल और फरलॉ सजायाफ्ता मुजरिम को दिया जाता है, जबकि जमानत उन मुल्जिमों को दिया जाता है जिनकी सुनवाई पेंडिंग है। जिन मुल्जिमों की सुनवाई चल रही होती है, उन्हें कस्टडी परोल भी दिए जाने का प्रावधान है। कानूनी जानकार बताते हैं कि जमानत, परोल और फरलॉ से अलग होती है।
कब मिलती है जमानत
कानूनी जानकार अमन सरीन ने बताया कि जब किसी आरोपी का केस निचली कोर्ट में पेंडिंग होता है, तो आरोपी सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है। इस अर्जी पर फैसला केस की मेरिट पर होता है। इस दौरान आरोपी को अंतरिम जमानत दी जा सकती है या फिर रेग्युलर जमानत दिए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा अग्रिम जमानत दिए जाने का भी प्रावधान है। इस दौरान अदालत शर्तें तय करती है और उन शर्तों और तय जमानत राशि भरने के बाद जमानत दे दी जाती है।

सजा का सस्पेंड किया जाना
यह जमानत से थोड़ा अलग है। जब किसी आरोपी को निचली अदालत से दोषी करार दिया जाए और उसे अपील करनी है तो वह सजा सस्पेंड करने के लिए गुहार लगा सकता है। इस दौरान मिलने वाली जमानत को तकनीकी तौर पर सजा सस्पेंड किया जाना कहते हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जब निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी जाती है और उस दौरान आरोपी जमानत की मांग करता है तो सजा सस्पेंड की जाती है और आरोपी जेल से बाहर होता है।

कस्टडी परोल
कानूनी जानकार एम. एस. खान ने बताया कि जब आरोपी के परिवार में किसी की मौत हो जाए या फिर किसी नजदीकी की शादी हो या फिर गंभीर बीमारी हो गई हो तो उसे कस्टडी परोल पर छोड़ा जाता है। यह अधिकतम छह घंटे के लिए होता है। कस्टडी परोल आरोपी व सजायाफ्ता दोनों को दिया जा सकता है। इस दौरान जेल से निकलने और जेल जाने तक आरोपी के साथ पुलिसकर्मी रहते हैं ताकि आरोपी भाग न सके। कोर्ट के निर्देश पर पिछले साल फरवरी में दिल्ली सरकार ने कस्टडी परोल, परोल और फरलॉ के बारे में गाइडलाइंस जारी की थीं और उसी के अनुसार परोल या कस्टडी परोल दिया जाता है।

परोल का प्रावधान
परोल का फैसला प्रशासनिक है। अगर जेल प्रशासन व गृह विभाग से परोल संबंधी अर्जी खारिज हो जाए तो सजायाफ्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। परोल के लिए तभी अर्जी दाखिल की जा सकती है, जब किसी भी अदालत में अर्जी पेंडिंग न हो और मुजरिम सजा काट रहा हो। इसके लिए कई शर्तें हैं। घर में किसी मौत, गंभीर बीमारी, किसी नजदीकी रिश्तेदार की शादी, पत्नी की डिलिवरी आदि के आधार पर परोल की मांग की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि दोषी शख्स का आचरण जेल में अच्छा हो। साथ ही पिछले परोल के दौरान उसने कोई क्राइम न किया हो। दोषी शख्स जेल सुपरिंटेंडेंट को याचिका देता है और वह उस याचिका को गृह विभाग के पास भेजता है, जहां से इस पर निर्णय होता है। अगर प्रशासनिक स्तर पर याचिका खारिज हो जाए तो याचिका हाई कोर्ट के सामने दाखिल की जा सकती है।

कब नहीं मिलता
क्रिमिनल वकील करण सिंह ने बताया कि ऐसे मुजरिम को परोल नहीं दिया जाता, जिसने रेप के बाद मर्डर किया हो, कई हत्याओं में दोषी करार दिया गया हो, जो भारत का नागरिक न हो या फिर आतंकवाद या देशद्रोह से संबंधित मामलों में दोषी करार दिया गया हो।

फरलॉ का प्रावधान
जिस सजायाफ्ता मुजरिम को पांच साल या उससे ज्यादा की सजा हुई हो और वह तीन साल जेल में काट चुका हो, उसे साल में सात हफ्ते के लिए फरलॉ दिए जाने का प्रावधान है। इसके लिए भी शर्त है कि उसका आचरण सही होना चाहिए। वह आदतन अपराधी न हो, भारत का नागरिक हो और गंभीर अपराध में दोषी न हो। इनकी अर्जी डीजी (जेल) के पास भेजी जाती है और फिर मामला गृह विभाग के पास जाता है। 12 हफ्ते में इस पर फैसला हो जाता है।