डॉ हरगोविंद खुराना एक भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का प्रदर्शन कराने वाले प्रथम व्यक्ति थे | उन्हें सन 1968 चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया । उन्हें यह पुरस्कार साझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों मार्शल डब्ल्यू. नीरेनबर्ग और डॉ. रॉबर्ट डब्लू्. रैले के साथ दिया गया था ।
हमारे डीएनए के आवश्यक कार्य और प्रथम सिंथेटिक जीन के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना को गूगल ने डूडल बनाकर सम्मान दिया है। आइये आज इस मौके पर डॉ.खुराना के बारे में जानते हैं.
डॉ. हरगोविंद जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के बारे में अध्ययन कर रहे थे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज काफी लंबे समय से चल रही है। डॉ. खुराना के अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चयों की अत्यंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएं थीं। डॉ. खुराना इन समुच्चयों का योग करके महत्वपूर्ण दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुए थे। डॉ. हरगोविंद खुराना ने साल 1970 में आनुवंशिकी के क्षेत्र में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। 09 नवंबर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसचूसट्स में अंतिम सांस ली। उनके पीछे परिवार में पुत्री जूलिया और पुत्र डेव हैं।
हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे। गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। वह जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानिय स्कूल में ही हुई।
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी.एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय में महान सिंह उनके निरीक्षक थे। इसके पश्चात भारत सरकार की छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देख-रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरेट की उपाधि अर्जित की। इसके उपरांत उन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं जिसके बाद वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलजी में प्रफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध कार्य में लगे।
नाम - डॉ. हरगोविंद खुराना
पत्नी - एस्थर
जन्म - 9 फरवरी, 1922. रायपूर जि.मुल्तान, पंजाब (अब पाकिस्तान).
पिता - लाला गणपतराय
पढाई - 1945 में M. Sc. और 1948 में PHD
कार्य - वैज्ञानिक
मृत्यु - 09 नवम्बर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसाचूसिट्स में अन्तिम सांस ली।
पुरस्कार: चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार (1968), गैर्डनर फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड, लुईसा फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड, बेसिक मेडिकल रिसर्च के लिए एल्बर्ट लॉस्कर पुरस्कार, पद्म विभूषण
• सन 1968 में चिकित्सा विज्ञानं का नोबेल पुरस्कार मिला
• सन 1958 में उन्हें कनाडा का मर्क मैडल प्रदान किया गया
• सन 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस ने उन्हें स्वार्ण पदक दिया
• सन 1967 में डैनी हैनमैन पुरस्कावर मिला
• सन 1968 में लॉस्कहर फेडरेशन पुरस्कालर और लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्काइर से सम्मानित किये गए सन 1969 में भारत सरकार ने डॉ. खुराना को पद्म भूषण से अलंकृत किया
• पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ ने डी.एस-सी. की मानद उपाधि दी
डॉ. हरगोविंद खुराना के 96वें बर्थडे पर जानें उनकी जिंदगी की कुछ खास बातें:-
1 -डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) में 9 जनवरी साल 1922 में हुआ. उनके पिता एक पटवारी थे. अपने माता-पिता के चार बेटों में हरगोविंद सबसे छोटे थे. उनके पिता टीचर थे.
2 - हरगोविंद खुराना बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे. महज 12 साल की उम्र में पिता की मौत के बाद उनकी सारी जिम्मेदारी बड़े भाई नंदलाल खुराना ने उठा ली थी. उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से 1943 में बी.एस-सी. (ऑनर्स) और 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री ली. फिर भारत सरकार के स्कॉलरशिप पर उन्हें हायर स्टडीज के लिए इंग्लैंड जाने का मौका मिला.
3 -इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देखरेख में रिसर्च किया और डॉक्टरेट की उपाधि ली. इसके बाद एक बार फिर उन्हें भारत सरकार से स्कॉलरशिप मिला और ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) जाने का मौका मिला. स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलजी में वह प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ रिसर्च करने लगे.
4 -1952 में उन्हें वैंकोवर (कनाडा) की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से बुलावा आया. वहां उन्हें बायो केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड बना दिए गए. 1960 में उन्हें ‘प्रोफेसर इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया. डॉ. हरगोविंद खुराना के ‘मर्क अवार्ड’भी मिल चुका है.
5 -1960 में डॉ. खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए. 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ले ली.
हमारे डीएनए के आवश्यक कार्य और प्रथम सिंथेटिक जीन के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना को गूगल ने डूडल बनाकर सम्मान दिया है। आइये आज इस मौके पर डॉ.खुराना के बारे में जानते हैं.
डॉ. हरगोविंद जीवकोशिकाओं के नाभिकों की रासायनिक संरचना के बारे में अध्ययन कर रहे थे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज काफी लंबे समय से चल रही है। डॉ. खुराना के अध्ययन का विषय न्यूक्लिऔटिड नामक उपसमुच्चयों की अत्यंत जटिल, मूल, रासायनिक संरचनाएं थीं। डॉ. खुराना इन समुच्चयों का योग करके महत्वपूर्ण दो वर्गों के न्यूक्लिप्रोटिड इन्जाइम नामक यौगिकों को बनाने में सफल हुए थे। डॉ. हरगोविंद खुराना ने साल 1970 में आनुवंशिकी के क्षेत्र में एक और योगदान दिया, जब वह और उनका अनुसंधान दल एक खमीर जीन की पहली कृत्रिम प्रतिलिपि संश्लेषित करने में सफल रहे। 09 नवंबर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसचूसट्स में अंतिम सांस ली। उनके पीछे परिवार में पुत्री जूलिया और पुत्र डेव हैं।
हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे। गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। वह जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानिय स्कूल में ही हुई।
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी.एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय में महान सिंह उनके निरीक्षक थे। इसके पश्चात भारत सरकार की छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देख-रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरेट की उपाधि अर्जित की। इसके उपरांत उन्हें एक बार फिर भारत सरकार से शोधवृत्ति मिलीं जिसके बाद वे जूरिख (स्विट्सरलैंड) के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलजी में प्रफेसर वी. प्रेलॉग के साथ शोध कार्य में लगे।
नाम - डॉ. हरगोविंद खुराना
पत्नी - एस्थर
जन्म - 9 फरवरी, 1922. रायपूर जि.मुल्तान, पंजाब (अब पाकिस्तान).
पिता - लाला गणपतराय
पढाई - 1945 में M. Sc. और 1948 में PHD
कार्य - वैज्ञानिक
मृत्यु - 09 नवम्बर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसाचूसिट्स में अन्तिम सांस ली।
पुरस्कार: चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार (1968), गैर्डनर फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड, लुईसा फाउंडेशन इंटरनेशनल अवार्ड, बेसिक मेडिकल रिसर्च के लिए एल्बर्ट लॉस्कर पुरस्कार, पद्म विभूषण
पुरस्कार से सम्मानित -
डॉ हरगोबिन्द खुराना को उनके खोज और कार्यों के लिए अनेकों पुरस्कार और सम्मान दिए गए। इन सब में नोबेल पुरस्कार सर्वोपरि है।
• सन 1968 में चिकित्सा विज्ञानं का नोबेल पुरस्कार मिला
• सन 1958 में उन्हें कनाडा का मर्क मैडल प्रदान किया गया
• सन 1960 में कैनेडियन पब्लिक सर्विस ने उन्हें स्वार्ण पदक दिया
• सन 1967 में डैनी हैनमैन पुरस्कावर मिला
• सन 1968 में लॉस्कहर फेडरेशन पुरस्कालर और लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्काइर से सम्मानित किये गए सन 1969 में भारत सरकार ने डॉ. खुराना को पद्म भूषण से अलंकृत किया
• पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ ने डी.एस-सी. की मानद उपाधि दी
डॉ. हरगोविंद खुराना के 96वें बर्थडे पर जानें उनकी जिंदगी की कुछ खास बातें:-
1 -डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) में 9 जनवरी साल 1922 में हुआ. उनके पिता एक पटवारी थे. अपने माता-पिता के चार बेटों में हरगोविंद सबसे छोटे थे. उनके पिता टीचर थे.
2 - हरगोविंद खुराना बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे. महज 12 साल की उम्र में पिता की मौत के बाद उनकी सारी जिम्मेदारी बड़े भाई नंदलाल खुराना ने उठा ली थी. उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से 1943 में बी.एस-सी. (ऑनर्स) और 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री ली. फिर भारत सरकार के स्कॉलरशिप पर उन्हें हायर स्टडीज के लिए इंग्लैंड जाने का मौका मिला.
3 -इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रॉजर जे.एस. बियर के देखरेख में रिसर्च किया और डॉक्टरेट की उपाधि ली. इसके बाद एक बार फिर उन्हें भारत सरकार से स्कॉलरशिप मिला और ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) जाने का मौका मिला. स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलजी में वह प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ रिसर्च करने लगे.
4 -1952 में उन्हें वैंकोवर (कनाडा) की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से बुलावा आया. वहां उन्हें बायो केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड बना दिए गए. 1960 में उन्हें ‘प्रोफेसर इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक सर्विस’ कनाडा में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया. डॉ. हरगोविंद खुराना के ‘मर्क अवार्ड’भी मिल चुका है.
5 -1960 में डॉ. खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए. 1966 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ले ली.