अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट का सिलसिला जिस तरह थमता नहीं दिख रहा, उसके चलते यह भी अंदेशा उभर आया है कि कहीं वह प्रति डॉलर 72-73 तक न पहुंच जाए। इस अंदेशे का आधार यह है कि बीते एक पखवाड़े में रुपए में 80 पैसे से अधिक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। हालांकि एक तर्क यह भी है कि रुपए का मूल्य वास्तविक मूल्य से अधिक हो गया था और मौजूदा गिरावट उसे व्यावहारिक स्तर पर ला रही है। इस तर्क को निराधार नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि रुपए के टूटने से पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है। एक सीमा के बाद पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़े मूल्य महंगाई बढ़ाने वाले साबित होंगे। चूंकि भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है इसलिए उसे उसकी खरीद में कहीं अधिक डॉलर देने पड़ रहे हैं। एक समस्या यह भी है कि कुछ तेल उत्पादक देशों के संकट से दो-चार होने के कारण कच्चे तेल के मूल्य भी बढ़ रहे हैं। डॉलर के मुकाबले कमजोर होता रुपया और कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष एक तरह से दोहरा संकट खड़ा कर रहे हैं। चूंकि कच्चे तेल के साथ अन्य तमाम वस्तुओं का भी आयात होता है, इसलिए अधिक डॉलर की निकासी विदेशी मुद्रा के भंडार पर भी असर डाल रही है।
नि:संदेह कमजोर होते रुपए का एक पहलू यह भी है कि निर्यातकों को राहत मिल रही है, लेकिन यह राहत चालू खाते के घाटे को कम करने में मुश्किल से ही सहायक बनती है और तथ्य यह है कि रुपये में गिरावट का एक कारण चालू खाते का घाटा बढ़ना भी है। हालांकि रुपए की कमजोरी के पीछे कुछ अन्य कारण भी हैं, लेकिन वे ऐसे हैं, जिन पर भारत का कोई जोर नहीं, जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच गहराता व्यापार युद्ध एवं ईरान को लेकर अमेरिकी रवैये का और सख्त होना।
यह कोई शुभ संकेत नहीं कि रुपए में गिरावट का सिलसिला कायम रहने के आसार हैं। यदि यह सिलसिला लंबा खिंचा तो कमजोर रुपया महंगाई को बल प्रदान करने के साथ ही विकास दर पर भी असर डालने वाला साबित हो सकता है। यह सही है कि डॉलर के मुकाबले अन्य देशों की मुद्रा में भी गिरावट आ रही है, लेकिन तेज गिरावट का सिलसिला चिंतित करने वाला है। अब तो ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि भारत की गिनती उन देशों में होने जा रही है, जिनकी मुद्रा में कहीं अधिक गिरावट दर्ज हो रही है। यह भी ठीक नहीं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार होने के कारण विदेशी पूंजी तेजी के साथ बाहर जा रही है।
रुपया जिन बाहरी कारणों अर्थात अंतरराष्ट्रीय कारणों से कमजोर हो रहा है, उनके संदर्भ में तो कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन जब भारतीय मुद्रा पूरी तौर पर नियंत्रण मुक्त नहीं है, तब फिर रिजर्व बैंक को उसकी सेहत की चिंता करनी ही होगी। रिजर्व बैंक के साथ-साथ सरकार को भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि अगर महंगाई ने सिर उठा लिया तो फिर उस पर आनन-फानन काबू पाना संभव नहीं होगा।