भारत के पहले राष्ट्रपति-
राष्ट्रपति के सूचि में पहला नाम डॉ राजेन्द्र प्रसाद का आता है। जो भारतीय संविधान के आर्किटेक्ट और आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति भी थे। उनका जन्म 1884 में हुआ था और डॉ प्रसाद, महात्मा गांधी के काफी करीबी सहयोगी भी थे। इसी वजह से वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में भी शामिल हो गए थे और बाद में बिहार क्षेत्र के प्रसिद्ध नेता बने।
नमक सत्याग्रह के वे सक्रीय नेता थे और भारत छोडो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया था और ब्रिटिश अधिकारियो को घुटने टेकने पर मजबूर किया था।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जानकारी – About Dr Rajendra Prasad
- 1906 में राजेंद्र बाबु के पहल से ‘बिहारी क्लब’ स्थापन हुवा था। उसके सचिव बने।
- 1908 में राजेंद्र बाबु ने मुझफ्फरपुर के ब्राम्हण कॉलेज में अंग्रेजी विषय के अध्यापक की नौकरी मिलायी और कुछ समय वो उस कॉलेज के अध्यापक के पद पर रहे।
- 1909 में कोलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र इस विषय का उन्होंने अध्यापन किया।
- 1911 में राजेंद्र बाबु ने कोलकता उच्च न्यायालय में वकीली का व्यवसाय शुरु किया।
- 1914 में बिहार और बंगाल इन दो राज्ये में बाढ़ के वजह से हजारो लोगोंको बेघर होने की नौबत आयी। राजेंद्र बाबु ने दिन-रात एक करके बाढ़ पीड़ितों की मदत की।
- 1916 में उन्होंने पाटना उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
- 1917 में महात्मा गांधी चंपारन्य में सत्याग्रह गये ऐसा समझते ही राजेंद्र बाबु भी वहा गये और उस सत्याग्रह में शामिल हुये।
- 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में वो शामील हुये। इसी साल में उन्होंने ‘देश’ नाम का हिंदी भाषा में साप्ताहिक निकाला।
- 1921 में राजेंद्र बाबुने बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की।
- 1924 में पाटना महापालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
- 1928 में हॉलंड में ‘विश्व युवा शांति परिषद’ हुयी उसमे राजेंद्र बाबुने भारत की ओर से हिस्सा लिया और भाषण भी दिया।
- 1930 में अवज्ञा आंदोलन में ही उन्होंने हिस्सा लिया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जेल में बुरा भोजन खाने से उन्हें दमे का विकार हुवा। उसी समय बिहार में बड़ा भूकंप हुवा। खराब तबियत की वजह से उन्हें जेल से छोड़ा गया। भूकंप पीड़ितों को मदत के लिये उन्होंने ‘बिहार सेंट्रल टिलिफ’की कमेटी स्थापना की। उन्होंने उस समय २८ लाख रूपयोकी मदत इकठ्ठा करके भूकंप पीड़ितों में बाट दी।
- 1934 में मुबंई यहा के कॉग्रेस के अधिवेशन ने अध्यपद कार्य किया।
- 1936 में नागपूर यहा हुये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन के अध्यक्षपद पर भी कार्य किया।
- 1942 में ‘छोडो भारत’ आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।
- 1946 में पंडित नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार स्थापन हुवा। गांधीजी के आग्रह के कारन उन्होंने भोजन और कृषि विभाग का मंत्रीपद स्वीकार किया।
- 1947 में राष्ट्रिय कॉग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना गया। उसके पहले वो घटना समिती के अध्यक्ष बने। घटना समीति को कार्यवाही दो साल, ग्यारह महीने और अठरा दिन चलेगी। घटने का मसौदा बनाया। 26 नव्हंबर, 1949 को वो मंजूर हुवा और 26 जनवरी, 1950 को उसपर अमल किया गया। भारत प्रजासत्ताक राज्य बना। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने का सम्मान राजेन्द्रबाबू को मिला।
- 1950 से 1962 ऐसे बारा साल तक उनके पास राष्ट्रपती पद रहा। बाद में बाकि का जीवन उन्होंने स्थापना किये हुये पाटना के सदाकत आश्रम में गुजारा।
भारतीय लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही एक भारतीय राजनीती के सफल नेता, और प्रशिक्षक वकील थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार क्षेत्र से वे एक बड़े नेता साबित हुए। महात्मा गाँधी के सहायक होने की वजह से, प्रसाद को ब्रिटिश अथॉरिटी ने 1931 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जेल में डाला।
राजेन्द्र प्रसाद ने 1934 से 1935 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भारत की सेवा की। और 1946 के चुनाव में सेंट्रल गवर्नमेंट की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर मंत्री के रूप में सेवा की। 1947 में आज़ादी के बाद, प्रसाद को संघटक सभा में राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया।
1950 में भारत जब स्वतंत्र गणतंत्र बना, तब अधिकारिक रूप से संघटक सभा द्वारा भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। इसी तरह 1951 के चुनावो में, चुनाव निर्वाचन समिति द्वारा उन्हें वहा का अध्यक्ष चुना गया।
राष्ट्रपति बनते ही प्रसाद ने कई सामाजिक भलाई के काम किये, कई सरकारी दफ्तरों की स्थापना की और उसी समय उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। राज्य सरकार के मुख्य होने के कारण उन्होंने कई राज्यों में पढाई का विकास किया कई पढाई करने की संस्थाओ का निर्माण किया और शिक्षण क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान देने लगे।
पुरस्कार : 1962 में ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च भारतीय सम्मान उनको प्रदान किया गया।
डा. राजेंद्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad
1. भूमिका:
अपनी सादगी औरसरलता से किसी को भी प्रभावित कर देने वाले विद्वान थे डॉ राजेन्द्र प्रसाद । इन्हें हम आदर से राजेन्द्र बाबू कहते हैं । स्वाधीन भारत के सर्वप्रथम राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी अहंकार (Ego) से पूरी तरह मुका रहने वाले और किसान जैसी वेशभूषा में रहने वाले व्यक्ति थे राजेन्द्र बाबू ।
2. जन्म और शिक्षा:
राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर, 1884 ई. को बिहार के सारण जिला स्थित जीरादेई नामक गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम महादेव सहाय था । माता और दादी से इन्हें बहुत प्यार मिला ।
3. कार्यकलाप:
राजेन्द्र बाबू की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । घर पर मौलवी साहब से फारसी पढ़ने के बाद छपरा के एक स्कूल में उन्हें प्रवेश दिलाया गया, जहाँ उन्हें अन्य विषयों के साथ हिन्दी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान मिला ।
एंटरेन्स (Now-a-days higher secondary) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ से उन्होंने एफ.ए की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की । इसके बाद उन्हें 50 रुपये मासिक छात्रवृत्ति मिलने लगी । वहीं उन्होंने दो विषयों में बीए, ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की । सन् 1904 में आपने एमए की परीक्षा पास की ।
कलकत्ता में ही राजेन्द्र बाबू वकालत करने लगे । वकालत खूब चली लेकिन ‘सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया’ सोसाइटी की स्थापना करने वाले देशभक्त गोपाल कृष्ण गोखले जी के कहने पर वे वकालत के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलनों में भाग लेने लगे ।
सतीशचन्द्र मुखर्जी की ‘डॉनसोसाइटी’ में शामिल होने पर उनकी मुलाकात देश के बड़े-बड़े नेताओं से हुई । सन् 1911 में जब अलग बिहार प्रात बना तो वे पटना आ गये । वहीं चम्पारण आन्दोलन के दौरान उनकी भेंट गाँधीजी से हुई ।
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हिन्दी, हरिजन और भूकप पीड़ितों की उन्होंने जो सेवा की, उससे वे बिहार के गाँधी बन गए । इसी दौरान उन्होंने यूरोप की यात्रा भी की । बाद में वे कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनाये गये किन्तु अधिक श्रम के कारण वे दमा (Ashthma) के शिकार हो गये ।
फिर भी वे समाज सेवा से अलग नहीं हुए । सन् 1946 में जब देश का संविधान (Constitution Assembly) बनना आरम्भ हुआ, तो वे संविधान सभा (Constitution Assembly) के अध्यक्ष (President) चुने गये और सन् 1950 में देश के गणतंत्र (Republic) घोषित होने पर देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए ।
1957 में दूसरी बार भी राष्ट्रपति (President) बने और कुल मिलाकर 12 वर्षों तकउन्होंने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया । देश के इस महान सपूत का निधन (Demise) पटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी 1963 को हो गया ।
4. उपसंहार:
डा. राजेन्द्र प्रसाद जी को सन् 1962 में भारत-रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया, किन्तु इससे पहले देश की जनता ने उन्हें देश-रत्न कहना आरम्भ कर दिया था । उनके कार्यों और व्यवहार से प्रभावित होकर सरोजिनी नायडू ने कहा था कि उनके जीवन की कहानी सोने की कलम मधु में डूबा कर लिखनी होगी ।