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जानिए -राष्ट्रीय झंडे का इतिहास और तिरंगा में 3 रंगों का महत्व // Know the History of the National Flag and the Importance of 3 Colors in the Tricolor.

किसी भी देश की एकता, अखंडता और उसकी पहचान उस देश का राष्ट्रीय झंडा होता है। जिसके तले पूरा राष्ट्र एक सूत्र में बंधा होता है। उसी तरह हमारे देश भारत का एक राष्ट्रीय झंडा है। जिससे सवा सौ करोड़ देशवासी गले के हार की मोतियों के तरह एक दूसरे से जुड़ा है। देश में विभिन्न धर्मों, जातियों के लोग रहते हैं। अमीर-गरीब रहते हैं। जिनमें कई असमानताएं हैं। मत भिन्नताएं हैं। जिसकी वजह से आपसी संघर्ष देखने को मिलता रहता है। लेकिन जब भी देश की बात आती है तब आपसी झगड़े को भूलकर पूरा देश राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के नीचे एक सूत्र में बंध जाता है। यह तिरंगे की सबसे बड़ी खासियत है।
झंडे में तीन रंगों का महत्व
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। ये तीन रंगों केसरिया, सफेद और हरे रंग से बना है। जबकि झंडे के बीच में नीले रंग का चक्र होता है। देश के झंडे में शामिल तीनों रंगों का अपना अलग महत्व है। केसरिया रंग जहां शक्ति का प्रतीक है। वहीं सफेद रंग शांति को दर्शाता है। जबकि हरा रंग हरियाली और संपन्नता को दिखाता है। तिरंगे के बीच में बना चक्र राजा अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह के क्षेत्रफल के आधार पर बनाया गया है। नीले रंग का चक्र जीवन में गतिशीलता और इसकी तीलियां धर्म के 24 नियम बताती है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के रंगों की तरह इसकी बनावट भी खास है। झंडे की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 होता है। जबकि चक्र की परिधि सफेद पट्टी के अंदर होती है। राष्ट्रीय ध्वज की रचना में कई बार बदलाव हुए। पहले ध्वज का इस्तेमाल आजादी के प्रति अपनी निष्ठा को दर्शाने के लिए होता था। बाद में ये राजनितिक विकास का भी प्रतीक बना। 
झंडे का इतिहास
देश का सबसे पहला राष्ट्रीय ध्वज वर्ष 1906 में बना। इसे कोलकाता के बागान चौक में फहराया गया था। इसमें केसरिया, पीला और हरा रंग था। इसमें आधे खिले कमल के फूल बने थे। साथ ही वंदे मातरम लिखा हुआ था। इससे पहले दो रंगों का ध्वज बना था। इसे पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था। बाद में इसे बर्लिन के एक सम्मेलन में भी दिखाया गया था। इसमें तीन रंग थे। जबकि ऊपरी पट्टी पर कमल का फूल बना था। साथ ही सात तारे भी बने थे। इससे पहले 1904 में आजादी के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए ध्वज का निर्माण किया गया। जिसे स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बनाया था। बंगाल में एक जुलूस के दौरान विरोध जताने के लिए तीन रंगों वाले ध्वज का प्रयोग किया गया था। फिर नया राष्ट्रीय झंडा साल 1917 में सामने आया। इसमें 5 लाल और 4 हरी पट्टियां बनी हुई थी। इसके साथ सप्तऋषि के प्रतीक सितारे भी थे। इस झंडे को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू आंदोलन के दौरान फहराया था। 
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का प्रगतिशील और अहम सफर 1921 से तब शुरू हुआ, जब सबसे पहले महात्मा गांधी जी ने भारत देश के लिए झंडे की बात कही थी और उस समय जो ध्वज पिंगली वैंकैया जी ने तैयार किया था उसमें सिर्फ दो रंग लाल और हरे थे। झंडे के बीच में सफेद रंग और चरखा जोड़ने का सुझाव बाद में गांधी जी लाला हंसराज की सलाह पर दिया था। सफेद रंग के शामिल होने से सर्वधर्म समभाव और चरखे से ध्वज के स्वदेशी होने की झलक भी मिलने लगी। इसके बाद भी झंडे में कई परिवर्तन किए गए। यह ध्वज पहले अखिल भारतीय कांग्रेस के लिए बना था। उसके बाद राष्ट्रीय झंडा 1931 बनाया गया। इसे राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी के संशोधन के बाद ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र रखा गया। झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया। भारतीय संविधान सभी में इसे 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर स्वीकृति मिली।
26 जनवरी 2002 में ध्वज संहिता में संशोधन 
संविधान सभा में स्वीकृति मिलने के बाद सबसे पहला राष्ट्रीय ध्वज 16 अगस्त 1947 को लाल किले पर फहराया गया। झंडे को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने फहराया था। पहले राजकीय जगहों के अतिरिक्त किसी और स्थान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। बाद में 26 जनवरी 2002 में ध्वज संहिता में संशोधन किया गया। इसके तहत भारतीय नागरिक घरों, कार्यालयों और फैक्टरियों में कभी भी राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते हैं।
तिरंगे को फहराने के नियम
राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए कुछ नियम तय किए गए है। इसके तहत तिरंगे का इस्तेमाल सांप्रदायिक लाभ के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इस ध्वज को फर्श या पानी पर नहीं रखा जा सकता है। न ही इसे रेल, नावों तथा हवाई जहाज पर लपेटा जा सकता है।