क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त -
बटुकेश्वर दत्त सन 1900 के एक भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे विशेषतः अपने साथी भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेंबली, नयी दिल्ली में 8 अप्रैल 1929 को बम विस्फोट करने के लिए प्रसिद्ध है। उन्हें गिरफ्तार करने के बाद उन्हें आजीवन कैद रखने की कोशिश की जा रही थी।
लेकिन जेल में रहते हुए भी उन्होंने कैदियों के हक़ में बहुत से आंदोलन किये जिनका फायदा सभी कैदियों को हुआ था। इसके साथ ही वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के भी सदस्य थे।
प्रसिद्ध क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का जन्म नवम्बर 1908 में कानपुर में हुआ था | उनका पैतृक गाँव बंगाल के बर्दवान जिले में था पर उनके पिता गोष्ट बिहारी दत्त कानपुर में नौकरी करते थे | बटुकेश्वर ने 1925 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता-पिता दोनों का देहांत हो गया | इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद के सम्पर्क में आये और क्रांतिकारी संघठन “हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन” के सदस्य बने | सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया |
विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियो ने अनेक काम किये | काकोरी की ट्रेन की लुट और लाहौर के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुयी तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिको की हडताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया | क्रान्तिकारियो ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा कदम उठाएंगे जिससे सबका ध्यान इस ओर जाएगा |
8 अप्रैल 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंक कर धमाका कर दिया | बम इस प्रकार बनाया गया था कि जिससे किसी की जान न जाए | बम के साथ ही “लाल पर्चे” की प्रतियाँ भी फेंकी गयी जिनमे बम फेंकने का क्रान्तिकारियो का उद्देश्य स्पष्ठ किया गया था | दोनों ने बच निकलने का कोई प्रयत्न नही किया क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे |
साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रांतिकारी तो बच निकलते है अन्य लोगो को पुलिस सताती है | दोनों गिरफ्तार हुए | 6 जुलाई 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया , उसका लोगो पर बड़ा प्रभाव पड़ा | इस मुकदमे में दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुयी | बाद में लाहौर षडयंत्र केस में भी दोनों अभियुक्त बनाये गये | इसमें भगतिसंह को फांसी की सजा हुयी लेकिन बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नही जुटा सकी |
बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को आजीवन कारावास की सजा भोगने अंडमान भेज दिया गया | इसके पूर्व राजबन्दियो के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार के लिए भूख हडताल में बटुकेश्वर दत्त भी सम्मिलित थे | यही प्रश्न जब उन्होंने अंडमान से उठाया तो उन्हें बहुत सताया गया | गांधी जी के हस्तक्षेप से वे 1938 में अंडमान से बाहर आये , पर बहुत दिन तक उनकी गतिविधिया प्रतिबंधित रही | 1942 में “भारत छोड़ो” आन्दोलन में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था | छुटने के बाद वे पटना में रहने लगे थे | बाद में एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में 54 वर्ष की उम्र उनका देहांत हो गया |