तात्या टोपे
देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम क प्रसिद्ध सेनानायक तात्या टोपे (Tatya Tope) का जन्म 1805 ईस्वी में पूना में हुआ था | उनके पिता का नाम पांडुरंग येवलेकर था | तात्या टोपे का पूरा नाम था रामचन्द्र पांडुरंग येवलेकर | उनके पिता पांडुरंग अन्ना साहब कहलाते थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के गृह विभाग का काम देखते थे | अंग्रेजो की कूटनीति के कारण जब पेशवा बाजीराव को पूना की गद्दी छोडकर कानपुर के निकट बिठुर में आकर बसना पड़ा तो उनके साथ पांडुरंग भी तात्या को लेकर बिठुर आ गये | उस समय तात्या की उम्र तीन वर्ष थी |
1857 के स्वातंत्र्य समर के सूत्रधारो में तांत्या टोपे का महत्वपूर्ण स्थान है। वे क्रांति के योजक नाना साहब पेशवा के निकट सहयोगी और प्रमुख सलाहकार थे। वे एक ऐसे सेना-नायक थे जो ब्रिटिश सत्ता की लाख कोशिशों के पश्चात भी उनके कब्जे में नहीं आए। इनको पकड़ने के लिए अंग्रेज सेना के 14-15 वरिष्ठ सेनाधिकारी तथा उनकी 8 सेनाएं 10 माह तक भरसक प्रयत्न करती रहीं, परन्तु असफल रहीं।
तात्या टोपे ने कई स्थानों पर अपने सैनिक अभियानों द्वारा उत्तर प्रदेश, राजस्थान,मध्य प्रदेश और गुजरात आदि में अंग्रेज़ी सेनाओं से कड़ी टक्कर ली और उन्हें बुरी तरह परेशान कर दिया। गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाते हुए तात्या टोपे ने अंग्रेज़ी सेनाओं के छक्के छुड़ा दिये। वे ‘तांतिया टोपी’ के नाम से भी विख्यात थे। अपनी अटूट देशभक्ति और वीरता के लिए तात्या टोपे का नाम भारतीय इतिहास में अमर है।
तात्या टोपे की मृत्यु से सम्बन्धित तथ्य –
– इस वीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने तात्या के साथ धोखा करके उन्हें पकड़ा था। बाद में अंग्रेज़ों ने उन्हें फ़ाँसी पर लटका दिया, लेकिन खोज से ये ज्ञात हुआ है कि फ़ाँसी पर लटकाया जाने वाला कोई दूसरा व्यक्ति था, तात्या टोपे नहीं। असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहे। ऐसा कहा जाता है कि 1862-1882 ई. की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी तात्या टोपे ‘नारायण स्वामी’ के रूप में गोकुलपुर, आगरा में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई महिने रहे थे।
– भारत में 1857 ई. में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता तात्या टोपे के बारे में भले ही इतिहासकार कहते हों कि उन्हें 18 अप्रैल, 1859 में फ़ाँसी दी गयी थी, लेकिन उनके एक वंशज ने दावा किया है कि वे 1 जनवरी, 1859 को लड़ते हुए शहीद हुए थे। तात्या टोपे से जुड़े नये तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘टोपेज़ ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे के अनुसार- “शिवपुरी में 18 अप्रैल, 1859 को तात्या को फ़ाँसी नहीं दी गयी थी, बल्कि गुना ज़िले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए 1 जनवरी, 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।” पराग टोपे के अनुसार- “इसके बारे में अंग्रेज़ मेजर पैज़ेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब ‘ऐंड कंटोनमेंट : ए जनरल ऑफ़ लाइफ़ इन इंडिया इन 1857-1859’ के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफ़ेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।” उन्होंने दावा किया कि टोपे के शहीद होने के बाद देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अप्रैल तक तात्या टोपे बनकर लोहा लेते रहे। पराग टोपे ने बताया कि तात्या टोपे उनके पूर्वज थे। उनके परदादा के सगे भाई।
1857 की क्रांति के इस महानायक का जन्म 1814 में हुआ था। बचपन से ही ये अत्यंत सुंदर थे। तांत्या टोपे ने देश की आजादी के लिये हंसते-हंसते प्राणो का त्याग कर दिया। इनका जन्म स्थल नासीक था। इनके बचपन का नाम रघुनाथ पंत था। ये जन्म से ही बुद्धिमान थे। इनके पिता का नाम पांडुरंग पंत था। कानपुर में झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, तांत्या टोपे, नाना साहब ने क्रांति की लहर फ़ैलाई।