दोस्तों अक्सर आपने Bail या जमानत शब्द सुना होगा ,हम में से बहुत से ऐसे दोस्त होंगे जिन्हें अभी तक ये पता नहीं होगा कि जमानत क्या होती है ? और जमानत कितने प्रकार की होती है ? तथा किस अपराध में जमानत मिलती है और किस अपराध में जमानत नहीं मिलती ?
अगर आपको झूठे केस में फंसाया जा रहा है या आपने कोई अपराध किया है और पुलिस आपको गिरफ्तार करने जा रही है तो क्या जमानत बिना कोर्ट जाये पुलिस थाने से भी मिल सकती है ? या फिर कोर्ट जाकर ही जमानत मिलेगी और अगर कोर्ट से जमानत मिलेगी तो कोर्ट से जमानत कैसे मिलेगी ? जमानत लेने के लिए जमानती को गारंटी के तौर पर क्या क्या देना होता है ? तथा किन शर्तों को पूरा करना होता है ? ये ऐसे बहुत सारे सवाल हमारे दिमाग में घूमते हैं तो आज हम आपको इन्हीं सारे सवालों के जबाव देने की कोशिस करेंगे.
आईये तो सबसे पहले हम जानते हैं कि जमानत क्या होती है ?
अगर किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया हो या फिर उसे झूठे केस में फंसाया जा रहा हो और वो व्यक्ति या तो पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया हो या गिरफ्तार होने वाला हो तो इस दशा में जेल जाने से बचने के लिए या फिर जेल से बाहर आने के लिए पुलिस या कोर्ट से आदेश लेने की प्रक्रिया को ही जमानत कहते हैं .
अब सवाल जमानत कितने प्रकार की होती है ?
जमानत 3 प्रकार की होती है
1. जमानतीय अपराध में Bail
2. अजमानतीय अपराध में bail
3. अग्रिम जमानत या एन्टीसिपेट्री बेल
जमानत के अनुसार अपराध
1. Bailable Offence (जमानती अपराध)
2.Non Bailable Offence (गैर जमानती अपराध)
3. Anticipatory Bail (अग्रिम जमानत)
1. Bailable Offence (जमानती अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 के अनुसार – ज़मानती अपराध से अभिप्राय ऐसे अपराध से है जो –
संहिता की प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराधों का उल्लेख किया गया है। जो अपराध जमानती बताया गया है और उसमें अभियुक्त की ज़मानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्त्तव्य है। उदाहरण के लिये, किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना, मानहानि करना आदि ज़मानती अपराध हैं। जमानती अपराध में कोर्ट को Bail देनी ही होती है इस अपराध वाली शाखा में अगर कोई पकड़ा जाये या गिरफ्तार हो जाये तो कोर्ट में Bail एप्लीकेशन लगाने पर कोर्ट को Bail देनी ही होती है तथा दिल्ली जैसे शहर में कार्य की अधिकता व कोर्ट पर काम के दबाव को कम करने के लिए अब ये पॉवर पुलिस को ही दे दी गई है मतलब ये की अब आप को दिल्ली में जमानतीय अपराध में अरेस्ट नही होना है आप को पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल जाएगी ये आपका अधिकार भी है तथा इसके लिए अगर आप के पास कोई जमानती नही भी है तो भी आपको जमानतीय अपराध होने पर पुलिस को छोड़ना होगा अगर कोई पुलिस वाला आपसे पैसे मांगे तो आप उसकी शिकायत कर सकते है लेकिन दिल्ली से बाहर ऐसा नही है अब भी कई राज्यों में जमानती अपराध होने पर भी अपराधी को पुलिस स्टेशन से जमानत न दे कर पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया जाता है लेकिन उनको कोर्ट से जमानत मिल जाती है
2.Non Bailable Offence (गैर जमानती अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में गैर -जमानती की परिभाषा नहीं दी गयी है। अतः हम यह कह सकते है कि ऐसा अपराध जो –
सामान्यतया गंभीर प्रकृति के अपराधों को ग़ैर-ज़मानती बनाया गया है। ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी के लिए गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड संहिता की धारा 437 के अंतर्गत मिलती है
3. Anticipatory Bail (अग्रिम जमानत) - न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दी जाती है (अर्थात आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा) भारत के कानून के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में कोई भी व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन कर सकता है। तथा कोर्ट सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकता है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 438 में दिया गया है। अग्रिम जमानत का आवेदन करने पर शिकायतकर्ता को भी कोर्ट इस प्रकार की जमानत की अर्जी के बारे में सूचना देती है ताकि वह चाहे तो न्यायालय में इस अग्रिम जमानत का विरोध कर सके ।
जमानत के लिए बेल बांड (Bail Bond) या प्रतिभूति :- जमानत के लिए किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए कोर्ट के समक्ष जो सम्पत्ति जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा की जाती है उसे प्रतिभूति यानि बेल बांड कहते हैं। जमानत देकर न्यायालय इससे निश्चिन्त हो जाता है कि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिये अवश्य कोर्ट में उपस्तिथ रहेगा अगर वो ऐसा नही करता है तो अमुक व्यक्ति जिसने उस अपराधी की जमानत दी है वह उसे पकड़ कर कोर्ट या पुलिस को सौंपेगा अन्यथा वह व्यक्ति की जमानत जब्त कर ली जायेगी या जमानत में दी गई राशी को कोर्ट में जमा करवा लिया जायेगा |
यहाँ ये बताना जरूरी है कई राज्य जैसे की दिल्ली, राजस्थान में लोगो को जमानत के लिए एक ही जमानती देना होता है पर कई राज्य जैसे हरियाणा, उतर प्रदेश में लोगो को जमानती के ऊपर शिनाख्ती भी देना होता है ये शिनाख्ती ये कहेगा की वो जमानती को जानता है तथा जमानती एक जिम्मेदार आदमी है अगर अपराधी भाग जाये तो जमानती उसे पकड़ कर लाने में सक्षम है पर कोर्ट का शिनाख्ती पर किसी भी प्रकार का कोई क़ानूनी दबाव नही होता और न ही शिनाख्ती कोर्ट में किसी भी क्षति की पूर्ति के लिए जिम्मेदार है |
प्रतिभूति के प्रकार :- आप बेल या जमानत के लिए प्रतिभूति के तौर पर इनमे से कुछ भी दे सकते हैं
अगर आपको झूठे केस में फंसाया जा रहा है या आपने कोई अपराध किया है और पुलिस आपको गिरफ्तार करने जा रही है तो क्या जमानत बिना कोर्ट जाये पुलिस थाने से भी मिल सकती है ? या फिर कोर्ट जाकर ही जमानत मिलेगी और अगर कोर्ट से जमानत मिलेगी तो कोर्ट से जमानत कैसे मिलेगी ? जमानत लेने के लिए जमानती को गारंटी के तौर पर क्या क्या देना होता है ? तथा किन शर्तों को पूरा करना होता है ? ये ऐसे बहुत सारे सवाल हमारे दिमाग में घूमते हैं तो आज हम आपको इन्हीं सारे सवालों के जबाव देने की कोशिस करेंगे.
आईये तो सबसे पहले हम जानते हैं कि जमानत क्या होती है ?
अगर किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया हो या फिर उसे झूठे केस में फंसाया जा रहा हो और वो व्यक्ति या तो पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया हो या गिरफ्तार होने वाला हो तो इस दशा में जेल जाने से बचने के लिए या फिर जेल से बाहर आने के लिए पुलिस या कोर्ट से आदेश लेने की प्रक्रिया को ही जमानत कहते हैं .
अब सवाल जमानत कितने प्रकार की होती है ?
जमानत 3 प्रकार की होती है
1. जमानतीय अपराध में Bail
2. अजमानतीय अपराध में bail
3. अग्रिम जमानत या एन्टीसिपेट्री बेल
जमानत के अनुसार अपराध
1. Bailable Offence (जमानती अपराध)
2.Non Bailable Offence (गैर जमानती अपराध)
3. Anticipatory Bail (अग्रिम जमानत)
1. Bailable Offence (जमानती अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 के अनुसार – ज़मानती अपराध से अभिप्राय ऐसे अपराध से है जो –
- (क) प्रथम अनुसूची में ज़मानती अपराध के रूप में दिखाया गया हो , या
- (ख) तत्समय प्रविर्त्य किसी विधि द्वारा ज़मानती अपराध बनाया गया हो , या
- (ग) गैर-ज़मानती अपराध से भिन्न अन्य कोई अपराध हो।
संहिता की प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराधों का उल्लेख किया गया है। जो अपराध जमानती बताया गया है और उसमें अभियुक्त की ज़मानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्त्तव्य है। उदाहरण के लिये, किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना, मानहानि करना आदि ज़मानती अपराध हैं। जमानती अपराध में कोर्ट को Bail देनी ही होती है इस अपराध वाली शाखा में अगर कोई पकड़ा जाये या गिरफ्तार हो जाये तो कोर्ट में Bail एप्लीकेशन लगाने पर कोर्ट को Bail देनी ही होती है तथा दिल्ली जैसे शहर में कार्य की अधिकता व कोर्ट पर काम के दबाव को कम करने के लिए अब ये पॉवर पुलिस को ही दे दी गई है मतलब ये की अब आप को दिल्ली में जमानतीय अपराध में अरेस्ट नही होना है आप को पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल जाएगी ये आपका अधिकार भी है तथा इसके लिए अगर आप के पास कोई जमानती नही भी है तो भी आपको जमानतीय अपराध होने पर पुलिस को छोड़ना होगा अगर कोई पुलिस वाला आपसे पैसे मांगे तो आप उसकी शिकायत कर सकते है लेकिन दिल्ली से बाहर ऐसा नही है अब भी कई राज्यों में जमानती अपराध होने पर भी अपराधी को पुलिस स्टेशन से जमानत न दे कर पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश किया जाता है लेकिन उनको कोर्ट से जमानत मिल जाती है
2.Non Bailable Offence (गैर जमानती अपराध) – भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में गैर -जमानती की परिभाषा नहीं दी गयी है। अतः हम यह कह सकते है कि ऐसा अपराध जो –
- (क) जमानतीय नहीं हैं, एवं
- (ख) जिसे प्रथम अनुसूची में ग़ैर-ज़मानती अपराध के रूप में अंकित किया गया है, वे ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं।
सामान्यतया गंभीर प्रकृति के अपराधों को ग़ैर-ज़मानती बनाया गया है। ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी के लिए गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड संहिता की धारा 437 के अंतर्गत मिलती है
3. Anticipatory Bail (अग्रिम जमानत) - न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दी जाती है (अर्थात आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा) भारत के कानून के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में कोई भी व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन कर सकता है। तथा कोर्ट सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकता है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 438 में दिया गया है। अग्रिम जमानत का आवेदन करने पर शिकायतकर्ता को भी कोर्ट इस प्रकार की जमानत की अर्जी के बारे में सूचना देती है ताकि वह चाहे तो न्यायालय में इस अग्रिम जमानत का विरोध कर सके ।
जमानत के लिए बेल बांड (Bail Bond) या प्रतिभूति :- जमानत के लिए किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए कोर्ट के समक्ष जो सम्पत्ति जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा की जाती है उसे प्रतिभूति यानि बेल बांड कहते हैं। जमानत देकर न्यायालय इससे निश्चिन्त हो जाता है कि आरोपी व्यक्ति सुनवाई के लिये अवश्य कोर्ट में उपस्तिथ रहेगा अगर वो ऐसा नही करता है तो अमुक व्यक्ति जिसने उस अपराधी की जमानत दी है वह उसे पकड़ कर कोर्ट या पुलिस को सौंपेगा अन्यथा वह व्यक्ति की जमानत जब्त कर ली जायेगी या जमानत में दी गई राशी को कोर्ट में जमा करवा लिया जायेगा |
यहाँ ये बताना जरूरी है कई राज्य जैसे की दिल्ली, राजस्थान में लोगो को जमानत के लिए एक ही जमानती देना होता है पर कई राज्य जैसे हरियाणा, उतर प्रदेश में लोगो को जमानती के ऊपर शिनाख्ती भी देना होता है ये शिनाख्ती ये कहेगा की वो जमानती को जानता है तथा जमानती एक जिम्मेदार आदमी है अगर अपराधी भाग जाये तो जमानती उसे पकड़ कर लाने में सक्षम है पर कोर्ट का शिनाख्ती पर किसी भी प्रकार का कोई क़ानूनी दबाव नही होता और न ही शिनाख्ती कोर्ट में किसी भी क्षति की पूर्ति के लिए जिम्मेदार है |
प्रतिभूति के प्रकार :- आप बेल या जमानत के लिए प्रतिभूति के तौर पर इनमे से कुछ भी दे सकते हैं
- (1) अपनी गाड़ी की आर. सी.
- (2) रजिस्टर्ड जमीन के पेपर या जमीन की फर्द
- (3) बैंक की F.D
- (4) इंद्रा विकास पत्र
- (5) सरकारी नोकरी होने पर 3 महीने से कम पुरानी Pay Slip तथा ऑफिस आई. कार्ड. की कॉपी इत्यादि पर कोर्ट के बताये मूल्य के अनुसार हो तो जमानत की प्रतिभूति के लिए उपयुक्त है |
बेल या जमानत मिलने की शर्ते :- ज़मानत पर रिहा होने का मतलब है कि आपकी स्वतंत्रता तो है पर आप पर कई प्रकार की बंदिशे भी कोर्ट द्वारा लगाई जाती है ये बंदिशे Bail बांड से अलग है जैसे की आप रिहा हो कर शिकायतकर्ता को परेशान नही करेंगे, किसी भी गवाह या सबूत को प्रभावित नही करेंगे |
इसके अलावा कोर्ट आप पर विदेश न जाने के लिए भी बंदिश लगा सकती है तथा आप का उसी शहर में रहना या किसी निश्चित एरिया में रहना तय कर सकती है या आप का किसी निश्चित दिन या फिर हर रोज पुलिस स्टेशन में आकर हाजरी लगवाना भी निश्चित कर सकती है
ऐसा न करते पाये जाने पर आपकी बेल या जमानत को कोर्ट रद्द कर सकता है ज्यादातर मामलो में पाया जाता है की शिकायतकर्ता कोर्ट में झूठी शिकायत दे देते है की आरोपी Bail या जमानत लेकर उसका दुरूपयोग कर रहा है तथा गवाहों को व उसे धमका रहा है जिससे की आरोपी की जमनत रद्द हो जाये | ऐसे में आप इन चीजो से बचे व सावधान रहे
जमानत मिलने के मापदंड :- अदालतों में जमानत देने के मापदंड बेहद अलग होते हैं। कुछ अपराध की गंभीरता पर निर्भर करते है, तो कई क़ानूनी कार्रवाई पर मान लीजिए किसी गंभीर अपराध में 10 साल की सजा का प्रावधान है और पुलिस को उसमे 90 दिन के अंदर आरोप पत्र दाखिल करना होता है यदि 90 दिन में आरोप-पत्र दाखिल नहीं कर पाती है तो आरोपी जमानत का अधिकारी होता है अक्सर सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति को कोर्ट ने जमानत दे दी और बाकि किसी और की जमानत नहीं हुई | एक लड़के को चोरी का षड्यंत्र करते हुए पकड़ा, उसके पास चाकू भी था, उसे जेल भेजा, अदालत में पेश किया। अदालत में उसके वकील ने जमानत पर छोड़ने की याचिका लगाई और 21 वर्ष का वह युवक केवल इसलिए जमानत पर बाहर आ सका, क्योंकि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के सुब्रत राय को दस हजार करोड़ रुपए के भुगतान पर रिहा नहीं किया, लेकिन मां की मृत्यु पर उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी गई।
आरोपी अधिकार के तौर पर इसमें जमानत नहीं मांग सकता। इसमें जमानत का आवेदन देना होता है, तब न्यायालय देखता है कि अपराध की गंभीरता कितनी है, दूसरा यह कि जमानत मिलने पर कहीं वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ तो नहीं करेगा।
कोर्ट से बेल या जमानत कैसे ले :- जमानत कोर्ट से लेना क्रिमिनल प्रैक्टिस में सबसे मुश्किल काम होता है तथा इसी चीज की क्लाइंट को सबसे ज्यादा जरूरत होती है आइये जानते हैं कि कोर्ट से जमानत कैसे ले |
- सबसे पहले अपनी एप्लीकेशन में ये जरुर लिखे की शिकायतकर्ता ने आपके खिलाफ ये झूठी F.I.R क्यों करवाई इसका कारण जरुर बताये क्योंकि कोर्ट आपको दोषी समझती है कोर्ट को ये बताना बहुत ही जरूरी होता है कि आपके खिलाफ ऐसा क्यों किया गया है|ताकि कोर्ट का सबसे पहले ये विचार सही हो सके कि हो सकता है कि F.I.R पूरी तरह से सच्ची नही है
- दूसरा आप के खिलाफ जो F.I.R हुई है उसमे से कमियाँ निकाले कि किस तरह से वह F.I.R. झूठी है जैसे कि कोई आप पर सडक दुर्घटना का आरोप लगाता है तो आप ये देखे कि आप की कार अगर आगे नही टकराई है तो लाजमी है की दूसरे ने ही आकर आप को टक्कर मारी है | अगर आपने टक्कर मारी होती तो आपकी गाड़ी का अगला हिस्सा उससे टकराता दूसरा जैसे कोई आप पर मार पिटाई का आरोप लगाये तो अपने जखम भी मेडिकल रिपोर्ट के साथ कोर्ट में दिखाए की अगर आपने उसे अपने साथियों के साथ मिल कर बुरी तरह पीटा था तो आपको चोट भी तो चोट लगी है वो कैसे लग सकती है इसका मतलब पहले लड़ाई उसने ही आप को पीट कर शुरू की थी | इसके लिए आप सी सी टी वी कैमरे की भी कोई रिकोर्डिंग हो तो उसका सहारा ले सकते हो आप अपनी लोकेशन मोबाइल द्वारा भी इसका सहारा ले सकते हो
- गिरफ्तारी होने बाद जांच एजेंसी को छोटे अपराधो में 60 दिनों में तथा जघन्य अपराधो में 90 दिन में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी होती है। इस दौरान चार्जशीट दाखिल न किए जाने पर सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत आरोपी को जमानत मिल जाती है। वहीं 10 साल से कम सजा के मामले में अगर गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल न किया जाए तो आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है
- एफ.आई.आर दर्ज होने के बाद आमतौर पर गंभीर अपराध में जमानत नहीं मिलती। यह दलील दी जाती है कि मामले की छानबीन चल रही है और आरोपी से पूछताछ की जा सकती है। एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद यह तय हो जाता है कि अब आरोपी से पूछताछ नहीं होनी है और जांच एजेंसी गवाहों के बयान दर्ज कर चुकी होती है, तब जमानत के लिए चार्जशीट दाखिल किए जाने को आधार बनाया जाता है। लेकिन अगर जांच एजेंसी को लगता है कि आरोपी गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं तो उस मौके पर भी जमानत का विरोध होता है क्योंकि ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज होने होते हैं
- अगर चार्जशीट दाखिल कर दी गई हो तो जमानत केस की मेरिट पर ही तय होती है। केस की किस स्टेज पर जमानत दी दिया जाए, इसके लिए कोई व्याख्या नहीं है। लेकिन आमतौर पर तीन साल तक कैद की सजा के प्रावधान वाले मामले में मैजिस्ट्रेट की अदालत से जमानत मिल जाती है
- अगर आप पर पहले कोई अपराधिक रिकोर्ड नही है तो वो भी बेल लेने का कारण हो सकता है आप बेल के लिए अपनी टैक्स Return या अपने पर आश्रित परिवार के लोगो या अपनी कम उम्र का सहारा ले कर भी Bail ले सकते है
- बेल या जमानत लेने में सबसे बड़ी बाधा पुलिस यानि (आई. ओ.) व सरकारी वकील होते है अगर वे आपकी बेल का ज्यादा विरोध नही करे तो भी कोर्ट आपको Bail देने का मन बन सकता है अब इन लोगो को विरोध करने से कैसे रोके ये मुझे आप लोगो को समझाने की जरूरत नही है
- कोर्ट में बैठे जज साहब भी इन्सान ही होते है और हर जज साहब का अपराधी को देखने का नजरिया अलग होता है अगर कोई जज साहब अपराधियों को Bail देने में कुछ ज्यादा रियायत देते है तो ऐसे जज साहब का समय आने पर ही Bail लगाये अन्यथा कुछ दिन ठहर कर ले | क्योकि जमानत न मिलने से तो अच्छा है कुछ दिन ठहर कर ही जमानत ले ली जाये |
- जैसे की उपर बताया गया है कि जज साहब भी इंसान होते है उसी प्रकार से Bail लेने के लिए हमेशा जज साहब का मूड देखे की कोर्ट बेल के बारे में क्या सोच रही है तथा किस प्रकार से किस बात या पॉइंट को ज्यादा पसंद करती है तो उसी प्रकार से ही आप जज साहब को समझाये मेरे कहने का मतलब ये है की Bail या जमानत मिलना या नही मिलना ये 80 प्रतिशत तक आपके वकील साहब पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार से कोर्ट को प्रभावित कर पाते है और Bail ले पाते है इसलिए हमेशा अच्छे व समझदार वकील साहब को ही बेल का काम सौंपें |
- बेल देने का आखिरी फैसला अदालत का ही होता है ऐसे में मामला अगर गंभीर हो और गवाहों को प्रभावित किए जाने का अंदेशा हो तो चार्ज फ्रेम होने के बाद भी जमानत नहीं मिलती। ट्रायल के दौरान अहम गवाहों के बयान अगर आरोपी के खिलाफ हों तो भी आरोपी को जमानत नहीं मिलती। मसलन रेप केस में पीड़िता अगर ट्रायल के दौरान मुकर जाए तो आरोपी को जमानत मिल सकती है | लेकिन अगर वह आरोपी के खिलाफ बयान दे दे | तो जमानत मिलने की संभावना खत्म हो जाती है। कमोबेश यही स्थिति दूसरे मामलों में भी होती है। गैर जमानती अपराध में किसे जमानत दी जाए और किसे नहीं, यह अदालत तय करता है और इसको तय करने का कोई स्टिक कानून नही है ये पूरी तरह से जज साहब के विवेक पर ही निर्भर करता है |
Bail (बेल) का विरोध कैसे करे :- कई बार हमारे सामने ऐसी स्तिथि आती है जब हमको अपराधी को सबक सिखाने के लिए बेल या जमानत का विरोध करना पड़ता अगर शिकायतकर्ता लडकी है तो बेल या जमानत का विरोध करने के लिए कोर्ट की ओर से आपको नोटिस जायेगा अन्यथा अगर आप पुरुष है तो कोर्ट में एक कैविट की एप्लीकेशन लगा कर जब भी आरोपी की बेल लगे आप को विरोध के लिए नोटिस मिले ऐसी व्यवस्था कर सकते है
- जब भी आप कोर्ट जाये जो भी आपके मेडिकल के पेपर है आप के पास है उसे साथ ले कर जाये व दिखा कर बेल या जमानत का विरोध करे
- कोर्ट में पूछे जाने वाले सवालों के जवाब बहुत ही शालीनता व समझ से दे ताकि कोर्ट को ये लगे की आप सही है
- हमेशा कोर्ट में अपराधी के बाहर आने पर स्वय व बाकि गवाहों व सबूतों को प्रभावित होने का आरोप लगाये की अपराधी Bail या जमानत ले कर उसका दुरूपयोग कर सकता है
- अगर कोर्ट अपराधी को बेल दे भी दे तो आप ऊपर की कोर्ट में उसकी बेल ख़ारिज करवाने की एप्लीकेशन लगा सकते है
- सरकारी वकील व पुलिस यानि आई. ओ. पर पूरी नजर रखे अगर वे अपराधी की तरफदारी करे या उसका बेल होने में साथ दे तो आप उनकी शिकायत कर के इन्हें बदलवा भी सकते है |
- ज्यादा अच्छा हो की आप बेल या जमानत का विरोध करने के लिए अपने वकील साहब अपोइन्ट कर ले तो ज्यादा अच्छा हो