सुखदेव (वर्ष 1907-1931) एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इनका पूरा नाम सुखदेव थापर है और इनका जन्म 15 मई 1907 को हुआ था। इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है। इनके पिता का नाम राम लाल था। अपने बचपन के दिनों से, सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे, जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य करदिया और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया।
सुखदेव की मृत्यु – Sukhdev death
दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्होंने मौत की सजा सुनाई गयी थी। 23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को फाँसी दी गयी थी और उनके शवो को रहस्यमयी तरीके से सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिये न्योछावर कर दिया था और सिर्फ 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए थे।
भारत को आज़ाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे, सुखदेव थापर, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया। सुखदेव महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे। दोनों साथ बड़े हुये, साथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये शहीद हो गये।
23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर सेंट्रल जेल में इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया और खुली आँखों से भारत की आजादी का सपना देखने वाले ये तीन दिवाने हमेशा के लिये सो गये।
सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य थे और उन्होंने पंजाब व उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों के क्रांतिकारी समूहों को संगठित किया। एक देश भक्त नेता सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज में युवाओं को शिक्षित करने के लिए गए और वहाँ उन्हें भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में अत्यन्त प्रेरणा मिली। उन्होंने अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारियों के साथ लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत की, जो विभिन्न गतिविधियों में शामिल एक संगठन था। इन्होंने मुख्य रूप से युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए प्रेरित किया था।
सुखदेव ने खुद कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे वर्ष 1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी। लाहौर षडयंत्र के मामले (18 दिसंबर 1928) में उनके साहसी हमले के लिए, उन्हें हमेशा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में याद किया जाएगा, क्योंकि उसमें इन्होंने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था। सुखदेव, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु साथी थे, जिन्होंने मिलकर वर्ष 1928 में पुलिस उप-अधीक्षक जे. पी. सॉन्डर्स की हत्या की थी, इस प्रकार के षडयंत्र को बनाकर पुलिस उप-अधीक्षक को मारने का कारण वरिष्ठ नेता, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना था। नई दिल्ली (8 अप्रैल 1929) की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करने के कारण, सुखदेव और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें इस अपराध का दोषी ठहराया गया तथा फैसले के रूप में इन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
सुखदेव थापर एक समर्पित नेता थे। वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने। उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में युवा पीढ़ी को शिक्षित करने का भी काम किया।
फाँसी का दंड
23 मार्च 1931 को, तीन बहादुर क्रांतिकारियों, भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरू को फाँसी दी गई, जबकि उनके शरीर का सतलज नदी के किनारे गुप्त रूप से अंतिम संस्कार कर दिया गया। सुखदेव थापर सिर्फ 24 वर्ष के थे, जब वह अपने देश के लिए शहीद हो गए थे। हालांकि, उन्हें हमेशा भारत की आजादी के लिए अपने साहस, देशभक्ति और जीवन त्याग के लिए याद किया जाएगा।
लाहौर षडयंत्र मामले में, भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को मौत की सजा दी गई थी। अदालत ने आदेश दिया कि तीनों को 24 मार्च 1931 को फाँसी दी जाएगी। पंजाब के गृह सचिव ने 17 मार्च 1931 को फाँसी की तारीख को बदल 23 मार्च 1931 कर दिया था।
सम्मान
23 मार्च देश भर में उन महान नायकों के बलिदान के सम्मान में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।