अक्सर हम सभी Copyright (कॉपीराइट ), Trademark, Patent (पेटेंट) के बारे में सुनते हैं। इन शब्दों के स्पष्ट अर्थ को लेकर लोग confuse रहते हैं। दरअसल ये तीनों इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के तहत आते हैं।
1. Copyright (कॉपीराइट) – किसी कृति को एकमात्र एवं अनन्य रूप से प्रकाशित एवं उसकी प्रतिलिपियां कराने का अधिकार कॉपीराइट कहलाता हैl Copyright Act 1957 इस प्रकार की कृतियों को प्रतिवादी द्वार प्रकाशित कराने से रोकने के लिए इन कृतियों को स्वामी को अधिकार प्रदान करता है।
इस अधिनियम के विषय क्षेत्र के अंतर्गत भौतिक, साहित्यिक, कलात्मक एवं संगीतात्मक रचनाएं शामिल है तथा रचनाओं के स्वामी को कॉपीराइट का एकाधिकार प्राप्त है। यह अधिकार लेखक के जीवन द्वारा तथा उसकी मृत्यु के पश्चात 50 वर्ष की अवधि तक अस्तित्व में रहता है और तत्पश्चात यह समाप्त हो जाता है। 1991 के संशोधन के द्वारा अब इस अवधि को 10 वर्ष और बढ़ा दिया गया है।
कॉपीराइट का संरक्षण प्राप्त करने के लिए किसी भी कृति में निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है –
- रचना निर्दोष होना चाहिए – किसी अधार्मिक, अनैतिक अथवा अशोभनीय प्रकाशन पर copyright का दावा नहीं किया जा सकता।
- रचना मौलिक होना चाहिए – किसी पुस्तक में मौलिकता की थोड़ी सी भी मात्रा होने पर उसके लेखक को लेखक मान लिया जाता है तथा उसे copyright प्राप्त हो जाता है।
- रचना का शारीरिक महत्व होना चाहिए – यदि रचना निरर्थक है अथवा उसमें ऐसी बात है जिनसे समाज का अहित होता है तो ऐसी रचना पर copyright नहीं प्राप्त होता है।
Case- मैकमिलन vs.कपूर
के मामले में यह निर्णित किया गया कि कोई भी रचना उपरोक्त कसौटी पर खरी उतरती है या नहीं यह तथ्यों पर निर्भर करता है।
कॉपीराइट का अतिक्रमण- तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी कृति के स्वामी की अनुमति के बगैर कोई ऐसा कार्य करता है जिसे करने से, अधिकार अधिनियम के अनुसार एकमात्र रूप से स्वामी को है।
लेखक को प्राप्त उपचार –किसी लेखक को कॉपीराइट के अतिक्रमण होने पर प्रतिवादी के विरुद्ध निम्न उपचार प्राप्त है-
- व्यादेश – न्यायालय द्वारा व्यादेश प्राप्त करके प्रतिवादी को कॉपीराइट का अतिक्रमण करने से रोकता है।
- नुकसानी – निसिधारया के साथ-साथ वादी नुकसानी प्राप्त करने का भी उत्तरदायी है। नुकसानी का निर्धारण प्रतिवादी को हुए लाभ के आधार पर किया जाता है।
- पुनः प्राप्ति – प्रतिवादी द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले अपनी रचना के कथित अंश को पुनः प्राप्त करने के लिए कार्यवाही कर सकता है।
2. पेटेंट (Patent)
पेटेंट राइट एक विशेषाधिकार है जो राज्य द्वारा उस व्यक्ति को प्राप्त होता है जो सर्वप्रथम किसी नए उत्पाद की खोज करता है अथवा उस का निर्माण करता है। ऐसे नए उत्पाद के आविष्कार पर आविष्कारक का एकाधिकार होता है अर्थात वही उसका प्रयोग कर सकता है अथवा उसे बेच सकता है।
पेटेंट वह व्यवस्था है जिसके तहत किसी भी नई खोज से बनने वाले product पर inventor को एकाधिकार दिया जाता है। यह अधिकार खोज करने वाले व्यक्ति (inventor यानी आविष्कारक) को सरकार द्वारा दिया जाता है। इसके बाद एक निश्चित समय तक न तो कोई उस उत्पाद को बना सकता है और न ही बेच सकता है। अगर बनाना चाहे, तो उसे लाइसेंस लेना पड़ेगा और Royalty देनी होगी। विश्व व्यापार संगठन ने पेटेंट की अवधि 20 साल तय कर रखी है।
सामान्यता पेटेंट 3 प्रकार के होते हैं-
यूटिलिटी पेटेंट- ये पेटेंट उपयोगी प्रोसेस, मशीन, प्रोडक्ट का कच्चा माल, किसी प्रोडक्ट का कम्पोज़िशन या इनमें से किसी में भी सुधार को सुरक्षित रखता है। जैसे- दवाइयां, फाइबर ऑप्टिक्स आदि।
डिजाइन पेटेंट- ये पेटेंट प्रोडक्ट के नए, ओरिजिनल और डिजाइन के गैर कानूनी इस्तेमाल को रोकता है। जैसे- कार्टून करेक्टर, एथलेटिक शूज का डिजाइन, जिन्हें पेटेंट से सुरक्षित रखा जाता है।
प्लांट पेटेंट- नए तरीके से तैयार की गयी पेड़-पौधों की किस्मों को सुरक्षित करने के लिए ये पेटेंट किया जाता है। जैसे- बेटर बॉय टमाटर, हाइब्रिड गुलाब और सिल्वर क्वीन भुड्डा प्लांट पेटेंट के उदाहरण है।
3. ट्रेडमार्क (Trademark)
ट्रेडमार्क वह चिन्ह है जो कोई व्यक्ति अपने माल/समान/रचना पर यह जताने के लिए लगाता है कि वह उसके द्वारा निर्मित समझा जाए और वह उसका स्वामी है।
यदि कोई व्यापारी अपने माल का इस प्रकार का कोई निशान, तस्वीर या लेवल लगाता है तो वह उसका व्यापार चिन्ह माना जाता है और वह उसकी निजी संपत्ति हो जाती है। जब कोई दूसरा व्यक्ति यह दिखाने के लिए उस चिन्ह का इस्तेमाल करता है तो वह ट्रेडमार्क का उल्लंघन करता है।
यदि कोई व्यापारी अपने माल का इस प्रकार का कोई निशान, तस्वीर या लेवल लगाता है तो वह उसका व्यापार चिन्ह माना जाता है और वह उसकी निजी संपत्ति हो जाती है। जब कोई दूसरा व्यक्ति यह दिखाने के लिए उस चिन्ह का इस्तेमाल करता है तो वह ट्रेडमार्क का उल्लंघन करता है।
ट्रेडमार्क के अतिक्रमण की कार्रवाई में वादी को निम्न बातें साबित करनी पड़ती है-
- ट्रेडमार्क असली था अर्थात उसे किसी अन्य ट्रेडमार्क से नकल नहीं किया गया।
- जिस माल पर ट्रेडमार्क लगाया गया था वह बिक्री की दशा में था।
- प्रतिवादी ने अपनी वस्तुओं को वादी की वस्तुओं के रूप में बेचने के इरादे से ट्रेडमार्क की नकल की थी।
- ट्रेडमार्क से जनता को धोखा होने की संभावना है जिससे कि वे प्रतिवादी का माल वादी के माल समझकर खरीद सकते हैं।
Case – कोप vs. इवेंस के वाद में यह निर्णय किया गया कि प्रतिवादी भिन्न ट्रेडमार्क प्रयुक्त कर सकता है परंतु यदि जनता को यह समझ में आए कि अंकित वस्तुएं निर्माता की वस्तुओं के समान है तो वह ट्रेडमार्क का उल्लंघन होगा।
Case – मुदलियत vs. अब्दुल करीम
के वाद में निर्मित किया गया कि यदि ट्रेडमार्क इतना सामान है कि औसत बुद्धि का व्यक्ति सरलता से अंतर ना कर सके तो ट्रेडमार्क का उल्लंघन माना जाएगा।
Case – मुदलियत vs. अब्दुल करीम
के वाद में निर्मित किया गया कि यदि ट्रेडमार्क इतना सामान है कि औसत बुद्धि का व्यक्ति सरलता से अंतर ना कर सके तो ट्रेडमार्क का उल्लंघन माना जाएगा।
4. ट्रेडनेम (Tradename)
निर्माण के बाद वस्तुओं को निर्माता का नाम दिया जाता है जिसके द्वारा कथित माल जनता में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि कोई दूसरा व्यक्ति वस्तुओं को ऐसे नाम से बेचता है कि खरीदने वाले को यह मालूम हो कि जो वस्तुएं खरीद रहे हैं उस पर पहले व्यक्ति का व्यापार नाम हैं तो यह एक अनुचित कार्य होता है और वादी प्रतिवादी के विरुद्ध व्यापार नाम के अतिक्रमण के लिए कार्यवाही कर सकता है।
यह विधि का एक सामान्य नियम है कि कोई भी व्यक्ति अपने वस्तु को दूसरों की वस्तु के रूप में नहीं दे सकता है।
यह विधि का एक सामान्य नियम है कि कोई भी व्यक्ति अपने वस्तु को दूसरों की वस्तु के रूप में नहीं दे सकता है।