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संपादकीय : अन्‍नदाता का आंदोलन

किसानों का एक संगठन अपनी मांगों को लेकर जिस तरह सड़कों पर उतरा और उसने अनुमति न मिलने के बावजूद दिल्ली तक पहुंचने की कोशिश की, उससे कृषि और किसानों की समस्याओं पर नीति-नियंताओं का ध्यान जाना ही चाहिए। इसमें दोराय नहीं कि भारतीय किसान तमाम समस्याओं से ग्रस्त हैं और उन समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर निदान होना चाहिए, लेकिन यदि किसान और उनका नेतृत्व करने वाले लोग या संगठन यह सोच रहे हैं कि कर्ज माफी जैसे रास्ते से किसानों का हित हो सकता है तो यह बिल्कुल भी सही नहीं है। पिछले दस वर्षों का अनुभव यही बताता है कि कर्ज माफी जैसे उपाय किसानों की हालत में सुधार करने में तो नाकाम होते ही हैं, पूरी बैंकिंग व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाते हैं और साथ ही कर्ज लेकर उसे ईमानदारी से चुकाने वाले लोगों के समक्ष संकट भी पैदा करते हैं।
यह संकीर्ण स्वार्थों वाली राजनीति के अतिरिक्त और कुछ नहीं कि कुछ दल किसानों के साथ हमदर्दी दिखाने के लिए कर्ज माफी की वकालत कर रहे हैं। राहुल गांधी और कर्ज माफी की मांग बार-बार दोहराने वाले लोगों को पता होना चाहिए कि संप्रग सरकार के समय जो भारी-भरकम योजना लाई गई थी, वह किस तरह बेनतीजा रही और किस तरह विदर्भ के वही किसान फिर से कर्ज माफी की मांग लेकर सामने आ गए, जिनके ऋण्ा माफ किए गए थे।
यह ठीक है कि किसानों के हित में कई अहम सुझाव देने वाली स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों पर अमल से बात बन सकती है, लेकिन मौजूदा हालात में इन्हें एक झटके में लागू नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि केंद्र सरकार स्वामीनाथन समिति की कई सिफारिशों पर अमल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है और इसी का हिस्सा है किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिश्ाा में उठाए गए कुछ उल्लेखनीय कदम। आवश्यक यह है कि इन कदमों का असर जमीन पर भी नजर आए और किसान यह महसूस करें कि फसल की लागत से दोगुनी आमदनी का जो संकल्प जताया जा रहा है, वह पूरा होगा। इसके साथ ही अपनी मांगें रखते समय किसानों को भी इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि उन उपायों पर अमल कैसे हो जो वास्तव में उनको आत्मनिर्भर बनाएं। कृषि और किसानों का कल्याण एक ऐसा विषय है जिस पर न तो अकेले केंद्र सरकार कुछ कर सकती है और न ही राज्य सरकारें। किसानों का हित तो तब होगा, जब केंद्र और राज्य मिलकर सक्रिय होंगे और राजनीतिक हानि-लाभ की चिंता किए बिना कदम उठाए जाएंगे। कृषि की बदहाली का एक बड़ा कारण इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त बुनियादी ढांचे का निर्माण न हो पाना है। यह एक सच्चाई है कि जिस तरह अन्य क्षेत्रों के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया है, उस तरह का ढांचा कृषि के लिए नहीं बन पाया। बात चाहे सिंचाई की प्रणाली दुरुस्त करने की हो या फिर कृषि को आधुनिक तौर-तरीकों से लैस करने की, जब तक केंद्र और राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर निवेश के लिए आगे नहीं आएंगी, तब तक किसानों की दशा में बुनियादी बदलाव नहीं आने वाला।