1990 के बाद से भारत में किसानो की आत्महत्या की घटनाये बहुत तेजी से बढ़ गयी है। जैसा कि हम जानते है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की एक बड़ी आबादी कृषि का काम करती है। भारत की कृषि मुख्यरूप से सिचाई के लिए मानसून पर आधारित है पर जब सही समय पर बारिश नही होती है तो नकदी फसलें नष्ट हो जाती है। किसान की पूरी मेहनत बर्बाद हो जाती है। एक तो उसे कोई उपज नही प्राप्त होती, उसका परिवार भी भुखमरी की कगार पर पहुँच जाता है। फसल नष्ट होने से किसान लिया हुआ कर्ज चुकाने में असफल हो जाता है। अवसाद में चला जाता है और यह जानलेवा कदम उठा लेता है। देश में होनी वाली कुल आत्महत्याओं का 11% हिस्सा किसानो की आत्महत्या का है।
हमारे देश में किसानो को 3 वर्ग में बांटा गया है- छोटे किसान, मध्यम किसान और बड़े किसान। इनके अलावा भूमिहीन किसानो का एक बड़ा वर्ग है जो बड़े अमीर किसानो/ जमीदारों से बटाई पर भूमी लेते है और उस पर खेती करते हैं। सबसे जादा परेशान वो ही है। उनके पास फसल बोने के लिए न तो बीज होता है और न सिचाई के लिए संसाधन। ऐसे में वो साहूकारों, बैंको से ऊँची दर पर कर्ज लेते है। किसान के उपर कई जिम्मेदारियां होती है। जिससे भूमि ली है उसे भी निर्धारित शुल्क देना होता है। बैंक को कर्ज चुकाना होता है, अपने परिवार का भरण- पोषण उसी फसल के पैसो में करना होता है। जब किसान की फसल सूखा, बाढ़, बेमौसम बरसात और दूसरे कारणों से नष्ट हो जाती है तो उसे कुछ भी समझ नही आता है। ऐसे में वो आत्महत्या कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है।
किसानो की आत्महत्या के मुख्य कारण Major causes responsible for Farmers suicide in India
- मानसून का सही समय पर नही आना
- बैंको द्वारा दी जानी वाली कर्ज की ऊंची दर
- बीजो, खादों व अन्य कृषि उपकरणों में वृद्धि
- बैंको, महाजनों, व दलालों का दुश्चक्र
- छोटे किसान जिनके पास खुद की जमीन नही है
- कृषि जोतों का छोटा होना
- सरकार के पास कोई ठोस योजना का न होना
- देश में आधुनिक तरह से खेती, उपकरों व तकनीकों का आभाव
- फसल की अनिश्चितता
- सूखा पड़ना
- कृषि उत्पादों की गिरती कीमत
- खेती की बढ़ती लागत
- देश में सिचाई सुविधाओं की कमी
- भूजल का गिरता स्तर
- चीनी मीलों का गन्ना किसानो को लम्बे समय तक भुक्तान न करना
- पारिवारिक दबाव, आय कम अधिक सदस्य
- सरकारी बाबुओं और अधिकारियों का रिश्वत लेना
- किसान की अपनी व्यक्तिगत समस्याये, बीमारियाँ, रोग व अन्य समस्यायें
- दलालों, बिचालियों द्वारा किसानो का शोषण
- बाढ़
- सरकारी योजनाये
- बेमौसम बरसात
- जमीदारो द्वारा किसानो का शोषण
छात्रों के लिए भी किसानों की आत्महत्या जैसे ज्वलंत मुद्दे को समझने और उन कारणों, जिनकी वजह से किसान इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं, का समाधान सोचने की आवश्यकता है। हम यहां किसानों की आत्महत्या से जुड़े मुद्दों की जांच-पड़ताल करते हुए एवं उनका समाधान सुझाते हुए साधारण भाषा में (शब्दों में ) लेख प्रस्तुत कर रहे हैं जो विद्यार्थियों के साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी समान रूप से उपयोगी है। इनमें से आप अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी लेख का चयन कर सकते हैं:
किसान आत्महत्या पर लेख 1
हमारे देश में किसान सुबह जल्दी उठकर पहले अपने पशुओं की सेवा करता है और उसके बाद उसके कदम अपने-आप ही उसकी कर्मभूमि अर्थात् उसके खेतों की तरफ बढ़ जाते हैं। उसकी दिनचर्या खेतों पर ही शुरू होती है और उसके दैनिक कार्यों में सबकुछ खेती से ही संबंधित होता है। वह एक आम शहरी नागरिक की तरह आठ घंटे की नौकरी नहीं करता बल्कि उसका तो सारा समय ही खेती-बाड़ी में गुजरता है। दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद वह शाम को जब कंधे पर हल लिए हुए अपने बैलों को हांकता हुआ घर पहुंचता है तब भी उसका मन खेतों में अटका रहता है। दूसरे दिन की जरूरतों एवं फसल की बुआई, कटाई आदि कि चिंता करते हुए ही वो रात को सो जाता है और फिर सवेरे से ही उसकी वही दिनचर्या शुरू हो जाती है और दिन का भोजन तो उसे खेतों में ही करना पड़ता है।
किसानों को पेश आ रही कठिनाईयां
ऐसी कठिन दिनचर्या के बाद कोई भी व्यक्ति यह कल्पना नहीं कर सकता कि उसे रूपए-पैसे की कभी दिक्कत होगी और वह गरीबी की वजह से आत्महत्या भी कर सकता है। लेकिन यह सच्चाई है कि हमारे देश में किसान आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे ज्यादातर साहूकारों एवं जमींदारों से कर्ज लेकर ही खेती कर पाते हैं। सही अर्थों में अपने फसल के बारे में कोई भी किसान भविष्यवाणी नहीं कर सकता और कई बार तो उनकी पूरी फसल बाढ़, सूखे एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चपेट में आकर तबाह हो जाती है और वे अपना कर्ज नहीं चुका पाते। कर्ज नहीं उतार पाने की वजह से उनके द्वारा उधार ली गई रकम पर ब्याज बढ़ता ही जाता है और धीरे-धीरे यह मूलधन से कई गुना ज्यादा हो जाता है।
एक फसल लेने के बाद दूसरी फसल लगाने के लिए उसे फिर से कर्ज लेना पड़ता है और वह कर्ज के दुश्चक्र में फंसता ही चला जाता है। स्थिति इतनी भयावह है कि पिता द्वारा खेती करने को लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए पिता की मृत्यु के बाद बेटे के उपर भी वह कर्ज चढ़ जाता है और वह भी पूरी जिंदगी उसे उतारने के लिए खेतों में मेहनत करता रहता है।
कारण और निदान
किसानों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा वजह यह है कि हमारे देश के ज्यादातर किसान भूमिहीन हैं और वे जमींदारों से बटाई पर जमीन लेकर खेती करते हैं। उसके सामने असली मुसीबत की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब तमाम व्यवस्थाएं एवं परिश्रम करने के बाद अचानक आए बाढ़ या सूखे की स्थिति की वजह से उसकी फसल खराब हो जाती है और वह पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। इस प्रकार उसे दोहरी मार झेलनी पड़ती है, एक तरफ तो उसे जमींदार का फसल में हिस्सा देने की चिंता सताती है और दूसरी तरफ उसे कर्ज और उसपर बढ़ रहे ब्याज को चुकाने के बारे में सोचना पड़ता है।
इन सबमें उसकी अपनी एवं उसके परिवार की ज़िदगी तबाह हो जाती है और वह थक-हारकर आत्महत्या कर लेता है। ऐसे में सरकार की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि हमारे अन्नदाता किसानों की रक्षा करें और उनके लिए सबसे पहले कम लागत पर कृषि योग्य भूमि की व्यवस्था करे। उसके बाद उन्हें बीज एवं खाद मुफ्त में मुहैया कराया जाना चाहिए। कृषि के लिए निम्न ब्याज दर पर धन भी सरकार को उपलब्ध कराना चाहिए और यदि किसी वजह से किसानों की खेती बर्बाद हो जाए तो उनके ऋण को माफ करने का प्रावधान भी होना चाहिए।
निष्कर्ष: फसल लगाने से लेकर बजार तक पहुंचाए जाने तक की सभी गतिविधियों में सरकार को किसानों का सहयोग करना चाहिए, उनके फसलों की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी, उनके लिए विभिन्न अनुदानों की व्यवस्था करनी होगी तभी किसान खुशहाल होंगे और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
किसान आत्महत्या पर लेख 2
त्याग, तपस्या एवं कठिन परिश्रम का दूसरा नाम किसान है। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है जहां लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या आज भी खेती पर निर्भर है। यही वजह है कि हमारे देश में जहां भी देखो गांव ही गांव एवं दूर-दूर तक फैले हुए खेत नजर आते हैं। तपती धूप हो या कड़ाके की सर्दी पड़ रही हो किसान आपको खेतों में काम करते हुए दिख जाएंगे। किसानों की पूरी जिंदगी मिट्टी से सोना उपजाने की कोशिश में निकल जाती है। किसानों का मुख्य व्यवसाय कृषि अर्थात खेती होती है और मेहनती किसान बिना किसी शिकायत के अपने खेतों में मेहनत करता रहता है। खेतों में फसल उपजाना कोई आसान काम नहीं और फसल की बुआई, फसल की देखभाल, उसकी कटाई और फिर तैयार फसल को बाजार में बेचने जैसी तमाम कोशिशें किसानों को लगातार करते रहना पड़ता है।
चिंताजनक स्थिति
इतनी कड़ी मेहनत करने के बाद भी देश के कुछ हिस्सों के किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है और यह एक गंभीर चिंता का विषय है। भारत को एक जमाने में सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि यहां अन्न और धन की कोई कमी नहीं थी और किसान सुखी थे। भारत को कृषिप्रधान देश का दर्जा भी इसी वजह से मिला लेकिन आज हालात काफी बदल गए हैं। आज हमारे अन्नदाता किसान के हालात इतने खराब हो गए हैं कि वे आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं। निश्चित रूप से यह एक भयानक त्रासदी है और एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते।
शुरूआत कैसे हुई
भारत में किसानों की आत्महत्या की समस्या लगभग 1990 के बाद प्रबल रूप से प्रकाश में आई जब उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजी भाषा के ‘द हिंदू’ नामक अखबार मे किसान आत्महत्या की सूचना देती हुई खबरें इसी वर्ष प्रकाशित हुई और सबसे पहले ये खबरें महाराष्ट्र से आईं। महाराष्ट्र के विदर्भ में कपास का उत्पादन करने वाले किसानों ने आत्महत्या कर ली थी और फिर आंध्रप्रदेश से भी किसानों की आत्महत्या करने की खबरें मिलने लगीं। शुरू-शुरू में लोगों ने यह सोचा कि यह समस्या सिर्फ विदर्भ एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों की ही है और उस वजह से वहां के स्थानीय सरकार को ही इस बारे में ध्यान देने की जरूरत है लेकिन जब आंकड़ों को ध्यान से देखा गया तो स्थिति और भी भयानक नजर आई।
यह पता चला कि आत्महत्या तो पूरे महाराष्ट्र में कई जगहों के किसान कर रहे हैं और साथ ही आंध्रप्रदेश एवं देश के कई अन्य राज्यों में भी यही हालात थे। यहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि आत्महत्या करने वाले केवल छोटी जाति वाले किसान ही नहीं थे, मध्यम और बड़े जाति वाले किसान भी इस गतिविधि में शामिल थे। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2009 में कुल 17,368 किसानों ने आत्महत्याएं की और वर्तमान में प्रतिवर्ष 10,000 किसानों द्वारा आत्महत्या का औसत दर्ज किया जा रहा है।
समाधान जरूरी
भारत में ज्यादातर किसान गरीब हैं और उनके पास अपनी जमीनें नहीं है। वे जमींदारों की जमीन पर खेती करते हैं और उन्हीं से कर्ज लेकर बीज, खाद एवं खेती से संबंधित अन्य जरूरतों की पूर्ति करते हैं। उनके एक कर्ज का बोझ उतर भी नहीं पाता कि दूसरी फसल लगाने के लिए उन्हें फिर से कर्ज लेना पड़ जाता है और इस बीच में अगर किन्हीं कारणों जैसे कि बाढ़, सूखा, फसल में कीड़ा लग जाना इत्यादी से फसल खराब हो जाए तो वे कर्ज नहीं चुका पाते और इस वजह से वे आत्महत्या कर लेते हैं।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत के किसान जमींदारों एवं साहूकारों के आर्थिक शोषण से परेशान होकर ही आत्महत्या करते हैं। कई बार तो यह भी देखा गया है कि फसल की जरूरत से ज्यादा पैदावार हो जाने की वजह से भी उन्हें आत्महत्या करनी पड़ जाती है क्योंकि ज्यादा पैदावार होने पर फसल का बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य इतना गिर जाता है कि वह उनके कुल लागत से भी बेहद कम हो जाती है और वे अपना कर्ज नहीं उतार पाते। ऋणग्रस्तता या कर्ज में दबे होने की स्थिति ही गरीब किसानों को और भी गरीब बनाती है।
किसानों की आत्महत्या रोकने का कार्य सरकार कई किसान कल्याण एवं कृषि विकास की योजनाओं द्वारा कर सकती है। साथ ही सरकार को फसल बीमा एवं कई अन्य प्रकार की सहायता जैसे सहकारी बैंको से कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता कराना एवं उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उच्च स्तर के खाद, उत्तम कृषि यंत्र प्रदान करना एवं भूमिहीन किसानों को भूमि उपलब्ध कराना आदि उपायों के द्वारा सरकार किसानों की आत्महत्या को रोकने में कामयाब हो सकती है।
निष्कर्ष: किसानों की आत्महत्या एक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले चुकी है और अगर जल्द ही किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और उन्हें आत्महत्या करने से रोका न गया तो यह स्थिति और भी भयावह रूप धारण कर सकती है। उनके लिए फसल बीमा, फसलों का उच्च समर्थन मूल्य एवं आसान ऋण की उपलब्धी सरकार को सुनिश्चित करनी होगी तभी किसानों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें आत्महत्या करने से रोका जा सकेगा।
किसान आत्महत्या पर लेख 3
भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन फिर भी यहां किसानों के हालात पूरे विश्व के कई विकासशील देशों की अपेक्षा बेहद चिंताजनक हैं। पिछले तकरीबन दो दशकों से हमारे देश में किसानों की आत्महत्या की समस्याएं बढ़ गई हैं। किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की शुरूआत महाराष्ट्र के कपास की खेती करने वाले किसानों द्वारा हुई और धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति पूरे देश के किसानों में फैल गई। आज हालात ये हैं कि तकरीबन हर राज्य में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जमा करने में सरकार लगी हुई है।
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण
उदारीकरण और वैश्वीकरण की वजह से हमारे देश में सस्ते खाद्यानों का आयात भी शुरू हो गया है और दूसरी तरफ देश के किसान लागत से भी कम मूल्य मिल पाने की वजह से खड़ी फसलों को खेत में ही आग लगाने पर मजबूर हो रहे हैं। गरीबी, तंगहाली एवं फसल उपजाने के उद्देश्य से लिए गए कर्जे और उसपर बढ़ रहे ब्याज की वजह से अंत में वह परिवार समेत आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।
निदान जरूरी
हालांकि कई कल्याणकारी योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई जा रही है लेकिन उन योजनाओं का खास असर होता हुआ दिखाई नहीं पड़ रहा है। जरूरत यह है कि किसानों की इस समस्या के बुनियादी कारणों पर गौर किया जाए उन्हें समझा जाए और फिर निदान की दिशा में प्रयास किया जाए।
निष्कर्ष: भारत जैसे एक कृषि प्रधान देश में किसानों की आत्महत्या बेहद चिंताजनक स्थिति है और यह निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय समस्या है जिससे निपटने का प्रयास बिना वक्त गंवाए करना होगा। गरीब एवं भूमिहीन किसानों के लिए सरकार द्वारा तुरंत फसल बीमा जैसे कल्याणकारी योजनाएं चलाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सरकार को आसान ब्याज दर पर किसानों को ऋण उपलब्ध कराना होगा तभी किसानों को आत्महत्या करने से रोका जा सकता है।
भारत में किसानों की आत्महत्या पर निबंध 4 (600 शब्द)
भारत में हर साल किसानों की आत्महत्या के कई मामले दर्ज किए जाते हैं। कई कारक हैं जिनकी वजह से किसान इस कठोर कदम को उठाने के लिए मजबूर होते हैं। भारत में किसानों की आत्महत्याओं में योगदान देने वाले कुछ सामान्य कारकों में बार-बार पड़ता सूखा, बाढ़, आर्थिक संकट, ऋण, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, परिवार की जिम्मेदारियां, सरकारी नीतियों में बदलाव, शराब की लत, कम उत्पादन की कीमतें और गरीब सिंचाई सुविधाएं हैं। यहां किसानों की आत्महत्या सांख्यिकीय आंकड़ों पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है और इस मुद्दे को बढ़ाने वाले कारणों की चर्चा की गई हैं।
किसान आत्महत्या: सांख्यिकीय डाटा
आंकड़ों के हिसाब से भारत में किसान आत्महत्याएं कुल आत्महत्याओं का 11.2% हिस्सा हैं। 10 वर्ष की अवधि में 2005 से 2015 तक देश में किसान की आत्महत्या की दर 1.4 और 1.8 / 100,000 आबादी के बीच थी। वर्ष 2004 में भारत में सबसे ज्यादा संख्या में किसानों की आत्महत्याएं देखी गईं। इस वर्ष के दौरान अब तक 18,241 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
2010 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने देश में कुल 135,599 आत्महत्याएं दर्ज की जिनमें से 15,963 किसान आत्महत्या से जुड़े मामले थे। 2011 में देश में कुल 135,585 आत्महत्या के मामले सामने आए थे जिनमें से 14,207 किसान थे। वर्ष 2012 में कुल आत्महत्या मामलों में 11.2% किसान थे जिनमें से एक चौथाई महाराष्ट्र राज्य से थे। 2014 में 5,650 किसान आत्महत्या मामले दर्ज किए गए थे। महाराष्ट्र, पांडिचेरी और केरल राज्यों में किसानों की आत्महत्या की दर सबसे अधिक है।
किसान आत्महत्या - वैश्विक सांख्यिकी
किसान आत्महत्याओं के मामलों न केवल भारत में देखे गये है बल्कि यह समस्या वैश्विक रूप धारण कर चुकी है। इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और अमरीका सहित विभिन्न देशों के किसान भी इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी अन्य व्यवसायों के लोगों की तुलना में किसान आत्महत्याओं की दर अधिक है।
किसान आत्महत्या के लिए जिम्मेदार कारक
यहां भारत में किसानों के आत्महत्याओं के कुछ प्रमुख कारणों पर एक नजर डाली गई है:
- सूखा
अपर्याप्त वर्षा फसल की विफलता के मुख्य कारणों में से एक है। जिन क्षेत्रों में बार-बार सूखा पड़ता है वहां फसल की पैदावार में बड़ी गिरावट दिखाई देती है। ऐसे क्षेत्रों में किसान आत्महत्याओं के मामले अधिक पाए गये हैं।
- बाढ़
किसानों को सूखे से जितना नुकसान होता है उतना ही बुरी तरह प्रभावित वे बाढ़ से होते हैं। भारी बारिश के कारण खेतों में पानी ज्यादा हो जाता है और फसल क्षतिग्रस्त हो जाती है।
- उच्च ऋण
किसानों को आम तौर पर जमीन की खेती करने के लिए धन जुटाने में कठिनाई होती है और अक्सर इस उद्देश्य के लिए वे भारी कर्ज लेते हैं। इन ऋणों का भुगतान करने में असमर्थता किसान आत्महत्याओं का एक और प्रमुख कारण है।
- सरकारी नीतियां
भारत सरकार की मैक्रो-आर्थिक नीति में परिवर्तन, जो कि उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के पक्ष में जानी जाती है, भी किसान आत्महत्याओं का कारण माना जाता है। हालांकि यह फिलहाल बहस का मुद्दा है।
- आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें
यह दावा किया गया है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों जैसे कि बीटी कपास भी किसान आत्महत्या का कारण हैं। इसका कारण यह है कि बीटी कपास के बीजों की कीमत लगभग दोगुनी आम बीजों के बराबर होती है। किसानों को निजी पूँजीदारों से इन फसलों के बढ़ने के लिए उच्च ऋण लेने के लिए मजबूर किया जाता है और बाद में उन्हें कपास को बाजार मूल्य की तुलना में बहुत कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैं जिससे किसानों के बीच कर्ज और आर्थिक संकट में वृद्धि होती है।
- परिवार का दबाव
परिवार के खर्चें और मांगों को पूरा करने में असमर्थता मानसिक तनाव पैदा करती है जिससे इस समस्या से पीड़ित किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।
निष्कर्ष
हालांकि सरकार ने संकट में किसानों की मदद के लिए बहुत सारे कदम उठाये है पर भारत में किसानों के आत्महत्याओं के मामले खत्म नहीं हो रहे। सरकार को केवल ऋण राहत या छूट पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय उनकी समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए किसान की आय और उत्पादकता पर ध्यान देने की जरूरत है।