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रिट क्या है, रिट कैसे कब और कहां लगाई जाती है // रिट याचिका दाखिल कैसे करें

रिट एक प्रकार का written order है, जो न्यायालय द्वारा किसी सरकारी संस्थान को कार्य को करने अथवा न करने के लिए दिया जाता है।
संविधान के भाग तीन में मूल अधिकार का वर्णन किया गया है। संवैधानिक उपचारों संबंधित मूल अधिकार का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 32-35 में किया गया है।

यदि मूल अधिकार का उल्लंघन राज्य द्वारा किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय में जबकि अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करने का अधिकार दिया गया है।

रिट के प्रकार

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas Corpus)
2. परमादेश (Mandamus)
3. प्रतिषेध (Prohibition)
4. उत्प्रेषण-लेख (Certiorari)
5. अधिकार-पृच्छा (Quo warranto)

बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

Habeas Corpus एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘Produce the Body’ अर्थात किसी व्यक्ति का शरीर पेश करें।
हिन्दी में Habeas Corpus को बंदी प्रत्यक्षीकरण कहते हैं जिसका अर्थ होता है ‘बंदी को प्रत्यक्ष करना’ अर्थात सामने लाना।
यह रिट उस अधिकारी के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है। इस रिट को जारी करके गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करें।
यह रिट पिड़ित व्यक्ति के ओर से कोई भी दायर कर सकता है। पिड़ित को न्यायालय में उपस्थित होना आवश्यक नहीं है।
यह फैसला कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट  (दार्जिलिंग) के वाद में आया था।
इस रिट का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार का अनुपालन करना है। यह रिट अवैध गिरफ्तारी के विरुद्ध कानूनी राहत प्रदान करता है।
Habeas Corpus सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए जिसके अन्तर्गत यह सुनिश्चित किया जाए की उसकी गिरफ्तारी वैध है या नहीं। यदी अवैध है तो उसे release कर उसके freedom को पुनः स्थापित किया जाए।

परमादेश (Mandamus)

Mandamus का अर्थ होता है ‘to give the mandate’ तथा हिन्दी में परमादेश का अर्थ होता है  ‘हम आदेश देते हैं’।
इस रिट के अन्तर्गत न्यायालय से यह appeal की जाती है कि court इस प्रकार का आदेश दे कि कोई भी सरकारी संस्थान अथवा लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन करें।
यदि कोई लोक अधिकारी जिसे कानून के अन्तर्गत कोई कार्य करना चाहिए जिसे वह नहीं कर रहा है तो High Court अथवा Supreme Court में Mandamus Writ दायर किया जा सकता है। इस writ के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अलावा अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करें।
* यह रिट राष्ट्रपति तथा राज्यपाल के विरुद्ध जारी नहीं हो सकता

प्रतिषेध (Prohibition)

अर्थात ‘मना करना’यह writ किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है।
इस writ को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपने अधिकारीता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है। यह writ सिर्फ Judicial अथवा Semi-Judicial के विरुद्ध ही जारी किया जाता है।

उत्प्रेषण-लेख (Certiorari)

अर्थात Produce the Certificate
अर्थात उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय से किसी वाद के बारे में जो उस अधीनस्थ न्यायालय में चल रहा होता है, उसकी समिक्षा के लिए documents की demand करता है।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो।
ऐसी कोई भी authorities जो legal functions का अथवा judicial functions का निर्वाहण करती है उस पर यह writ लागू होती है। Certiorari writ तभी लगता है जब किसी वाद का निर्णय lower court द्वारा दिया जा चुका हो।

अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

अधिकार पृच्छा का अर्थ यह है कि उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय किसी भी लोक अधिकारी से यह पूछ सकता है कि आप किस position से इस पद को hold कर रहे हैं।
अर्थात Quo warranto उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे नहीं है।
👉 अनुच्छेद 139 के अन्तर्गत सांसद द्वारा supreme court को इन रिटो के अलावा और भी रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है।