Biography of Chandra Shekhar Azad
- आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 आदिवासी ग्राम भावरा में हुआ था
- इनके सम्मान में इनके गॉव का नाम वर्ष 2011 में बदलकर चंद्र शेखर आजाद नगर कर दिया गया
- इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था
- इनके पिता मूल रूप से उत्तर प्रदेेेेश के उन्नाव जिले के बदर गॉव के रहने वाले थे लेकिन भीषण अकाल पडने कारण उन्हें ये गॉव छोडना पडा था
- आजाद ने सबसे पहली बार गांधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में भाग लिया उस समय उनकी उम्रं मात्र 15 वर्ष थी
- तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जब जज ने उनसे उनके पिता नाम पूछा तो जवाब में चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया था
- उनके इस वर्ताव के लिए जज ने उन्हें 15 कोडे मारने की सजा सुनाई थी
- यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा
- इसके बाद आजाद 17 वर्ष की अवस्था में क्रांतिकारी दल ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में सम्मिलित हो गए
- आजाद ने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए इसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बिताया था
- चंद्रशेखर आजाद प्रसिद्ध काकोरी कांड में सक्रिय भाग लिया था
- इस कांड में 9 अगस्त, 1925 को क्रान्तिकारियों ने लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर सहारनपुर – लखनऊ सवारी गाड़ी को रोककर उसमें रखा अंगेज़ी ख़ज़ाना लूट लिया
- काकोरी कांड के बाद आजाद ने अपने संगठन का नाम बदलकर नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन एण्ड आर्मी’ रखा था
- इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी दोनों ओर से गोलीबारी हुई चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में ये कसम खा रखी था कि वो कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली
- चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में में हुई थी
- आजाद की मृत्यु के बाद इस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आज़ाद पार्क रखा गया था
- आजाद ने एक कविता लिखी थी और वह अक्सर उसे गुनगुनाया करते थे-
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे
नाम – पंडित चंद्रशेखर तिवारी।
जन्म – 23 जुलाई, 1906 भाभरा (मध्यप्रदेश)।
पिता – पंडित सीताराम तिवारी।
माता – जाग्रानी देवी।
दल के लिए धन जुटाया
भगत सिंह व उनके साथियों ने लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला संडर्स को मार कर लिया। फिर दिल्ली असेम्बली में बम धमाका भी आजाद ने किया। आजाद का कांग्रेस से जब मन भंग हो गया आजाद ने अपने संगठन के सदस्यों के साथ गांव के अमीर घरों में डकैतियां डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके। इस दौरान उन्होंने व उनके साथियों ने एक भी महिला या गरीब पर हाथ नहीं उठाया। डकैती के वक्त एक बार एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन ली तो अपने उसूलों के चलते हाथ नहीं उठाया। उसके बाद से उनके संगठन ने सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया।
1 अगस्त 1925 को काकोरी कांड
सन 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आ गया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये। तभी वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। आज़ाद ने क्रांतिकारी बनने के बाद सबसे पहले 1 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन इसके बाद 1927 में बिसमिल के साथ मिलकर उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया।
27 फरवरी 1931 27 फरवरी 1931 को वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से मिले और आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र-कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने भुनभुनाते हुए बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क चले गये।
आजाद का अंतिम संस्कार
अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मिले और इस बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर भारी पुलिस बल के साथ जीप से वहाँ आ पहुंचा। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई और इसी मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गये। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये आज़ाद का अंतिम संस्कार कर दिया था।