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पुलिस कस्टडी तथा जूडिशल कस्टडी में क्या अंतर है? // What is the difference between police custody and judicial custody?

पुलिस कस्टडी तथा जूडिशल कस्टडी में क्या अंतर है?

पुलिस कस्टडी तथा जूडिशल कस्टडी  दोनों में संदिग्ध को कानून के हिरासत में रखा जाता है। दोनों एक दूसरे से जुड़े होने के बावजूद एक दूसरे से अलग हैं। दोनों प्रकार की कस्टडी द्वारा व्यक्ति के लिबर्टी तथा मौलिक अधिकार को रोका जाता है।
पुलिस अथवा कोर्ट ऐसे व्यक्ति को जिससे आम जनता को खतरा हो या खतरा होने की आशंका हो तो उसके मौलिक अधिकारों पर रोक लगा देती है और उस पर मुकदमा चलाती है।
पुलिस कस्टडी तथा जूडिशल कस्टडी में व्यक्ति को हिरासत में ले लिया जाता है। वह ऐसा व्यक्ति होता है जिस पर यह शक होता है कि वह कोई संदिग्ध अपराध करने वाला है या कर सकता है या किसी प्रकार से कानून का उल्लंघन कर सकता है।
पुलिस कस्टडी से तात्पर्य एक व्यक्ति को पुलिस ने अपनी हिरासत में ले लिया है। पुलिस कस्टडी में व्यक्ति को पुलिस स्टेशन में बंद कर दिया जाता है।
जब भी पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में लेती है तो वह अपने जांच को आगे बढ़ाने के लिए CrPC की धारा 167 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट से 15 दिन तक के लिए हिरासत में रखने का समय मांग सकती है।
एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को 15 दिनों तक किसी भी तरह के हिरासत में भेज सकता है।
जब भी पुलिस किसी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो 24 घंटे तक ही पुलिस कस्टडी में रख सकती है। ज्यादा समय तक रखने के लिए उस संदिग्ध व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है।
जो जमानती अपराध होते हैं वैसे मामलों में आरोपी को पुलिस कस्टडी में नहीं भेजा जाता और पुलिस कस्टडी तब तक ही रहती है जब तक पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं किया जाता। एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने पर पुलिस के पास आरोपी को हिरासत में रखने का कोई कारण नहीं बचता।
लेकिन कुछ ऐसे कानून होते हैं जिनके तहत पुलिस किसी आरोपी को 30 दिनों तक भी पुलिस कस्टडी में रख सकती है।Maharastra control of organise crime Act 1999 के तहत पुलिस कस्टडी को 30 दिनों तक के लिए बढ़ाया जा सकता है।
जूडिशल कस्टडी – जूडिशल कस्टडी पुलिस कस्टडी से बिल्कुल अलग होती है। जूडिशल कस्टडी अर्थात न्यायिक हिरासत मजिस्ट्रेट अथवा कोर्ट द्वारा ही निर्धारित की जाती है। मामले की गंभीरता के आधार पर न्यायाधीश द्वारा इस हिरासत का आदेश दिया जाता है।
इस तरह से मजिस्ट्रेट संदिग्ध व्यक्ति को पुलिस कस्टडी अथवा जूडिशल कस्टडी में भेज सकते हैं।
पुलिस कस्टडी अक्सर पूछताछ अथवा मामले की छानबीन के लिए मांगी जाती है जबकि जूडिशल कस्टडी में आरोपी से कोई पूछताछ नहीं की जाती। यदि किसी प्रकार की पूछताछ करनी हो तो सबसे पहले न्यायाधीश से आदेश लेनी पड़ती है।
इस तरह से पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है और पूछताछ करती है और उसके बाद संदिग्ध को कोर्ट में पेश कर दिया जाता है।
न्यायाधीश जमानत दे सकते हैं अथवा संदिग्ध व्यक्ति को पुलिस कस्टडी अथवा जूडिशल कस्टडी में भेज सकते है।
पुलिस कस्टडी पुलिस द्वारा प्रदान किए जाने वाले सुरक्षा के अंतर्गत होता है जबकि जूडिशल कस्टडी में गिरफ्तार व्यक्ति  न्यायाधीश के सुरक्षा के अंतर्गत होता है।
पुलिस कस्टडी तब शुरू होती है जब पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है जबकि जूडिशल कस्टडी तब शुरू होती है जब न्यायाधीश आरोपी को पुलिस कस्टडी से जेल भेज देता है।