पंजाब की धरती ने अनेक महान और वीर पुरुष पैदा किये है | उनमे से ही एक थे लाला लाजपतराय (Lala Lajpat Rai) , जिन्हें “शेरे पंजाब” या “पंजाब केसरी” कहा जाता था | वे सचमुच केसरी थे | केवल पंजाब ही नहीं ,सारे भारत के | जैसे केसरी की दहाड़ से वन के जीव जन्तु भयभीत हो जाते है उसी तरह लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) की गर्जना से अंग्रेज सरकार काँप उठती थी | जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब उनका नाम युवाओं के लिये प्रेरणा और उत्साह का प्रतीक बन गया था | राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के पर्याय था उन दिनों लाल,बाल और पाल का नाम | लाल-लाजपतराय , बाल -बाल गंगाधर तिलक , पाल -विपिनचंद्र पाल | ये लोग कांग्रेस के भीतर “गरम दल” का नेतृत्व करते थे |
पंजाब केसरी कहा जाता है...
लाला लाजपत राय को पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियां भी लिखी थीं, उन्होने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया था।
देश के स्वाभिमान और व्यक्ति की गरिमा के लिए अपनी कुर्बानी देने वाले लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का नाम स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आदर्श था | 1928 में “साइमन कमीशन” का बहिस्कार करते समय जिस तरह लालाजी दमनकारी अंग्रेजी सत्ता की लाठियों की चोट से शहीद हुए , उससे पुरे देश में रोष और शोक व्याप्त हो गया था | सरदार भगत सिंह , राजगुरु जैसे क्रांतिकारीयो ने लालाजी की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही असेम्बली में बम फेंककर सारे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था और इस केस में अपनी शहादत देकर करोड़ो भारतीयों का मन जीता था |
लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर जिले में ढ़ोंढ़ी नामक गाँव में ननिहाल में हुआ था | उनके पिता का नाम राधाकृष्ण और माता का नाम गुलाब देवी था | राधाकृष्ण अध्यापक थे और अरबी,फारसी एवं उर्दू के विद्वान एवं आर्यसमाजी थे | स्वामी दयानन्द के विचारो एवं सिद्धांतो के अनुसार ही जीवन व्यतीत करते थे | माता गुलाब देवी भी प्रतिदिन संध्या , हवन आदि किया करती थी | बालक लाजपत राय के चरित्र गठन में उनके माता-पिता के दिए संस्कारों का ही हाथ था | वे तीव्र बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र थे | प्रतिवर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आते थे | मिडिल की परीक्षा में उन्होंने इतने अंक प्राप्त किये कि छात्रवृत्ति के हकदार बने |
हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे कॉलेज में पढने के लिए लाहौर चले गये | वहां से सन 1885 में उन्होंने इंटर और वकालत , दोनों परीक्षाये साथ साथ पास की | अपने कॉलेज जीवन में ही वे सामाजिक कार्यो में भाग लेने लगे थे और सामाजिक विषयों पर ही भाषण दिया करते थे | वकालत की परीक्षा पास करने के बाद लालजी हिसार चले गये और वहां वकालत करने लगे | कुछ समय में ही उनकी वकालत चमक गयी और उन्होंने धन के साथ नाम और यश भी प्राप्त किया | उनका सार्वजनिक जीवन में प्रवेश भी यही से हुआ |
हिसार में रहते हुए उन्होंने “शिक्षा संघ” नाम की एक संस्था बनाई , एक अनाथालय की स्थापना की , बेसहारा स्त्रियों के लिए उद्योगशाळा खोली और आर्यसमाज के सिद्धांतो के प्रचार के साथ दलितों ,गरीबो एवं विधवाओं की सेवा के लिए भी प्रवृत हुए | सन 1896 में पड़े अकाल के समय लालजी अकाल राहत के कार्य में भी महत्वपूर्ण सेवाए दी | यही से वे कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए बम्बई गये , जहा मालवीय जी ने उनका स्वागत किया और उनके कांग्रेस प्रवेश पर हर्ष प्रकट किया | आगे चलकर उन्होंने कार्यकर्ताओं को उच्च राजनीतक शिक्षा देने के लिए “तिलक स्कूल ऑफ़ पॉलिटिक्स” नाम से राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना भी की , जो बाद में “लोक सेवा मंडल” नाम से विख्यात हुआ | लोक सेवा मंडल ने अनेक देशभक्तों को जन्म दिया |
हिसार से लालाजी (Lala Lajpat Rai) लाहौर चले गये | वहां भी कुछ दिनों में ही उनकी वकालत चमक उठी और उनकी गणना लाहौर के प्रसिद्ध वकीलों में की जाने लगी | आय बढी तो आर्यसमाज के कार्यो में भी धन लगाने लगे | कुछ समय बाद उन्होंने द्यायान्न्द एंग्लो कॉलेज की स्थापना में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया | लाहौर में खुलने वाला यह पहला डी.ए.वी. कॉलेज था | बाद में ये भारत के सभी बड़े नगरो में खुलते चले गये | इन कॉलेजों में आर्यसमाज के सिद्धांतो के प्रचार के साथ स्वराज प्राप्ति के लिए भी युवक तैयार किये जाते थे | आगे चलकर स्वतंत्रता की लड़ाई में दयानन्द महाविद्यालय के विद्याथियो ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया |
जिन दिनों लालाजी (Lala Lajpat Rai) दयानन्द एंग्लो कॉलेज लाहौर को आदर्श कॉलेज बनाने में लगे हुए थे उन्ही दिनों उनका राजनीति में भी प्रवेश हुआ | सन 1889 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन के समय लालजी स्वागत समिति के अध्यक्ष बने | इसके बाद उनका अधिक समय राजनीतिक कार्यो में बीतने लगा | सामाजिक कार्यो में पहले ही अधिक व्यस्त थे अब दोहरे कार्य भार की अत्यधिक व्यस्तता से वे बीमार पड़ गये | ठीक होने के बाद उन्होंने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय राजनीतिक कार्यो में देने लगे | लाला लाजपत राय कांग्रेस में थे गांधीजी का आदर करते थे किन्तु उनकी अहिंसा के पक्ष में वे नही थे | वे कहा करते थे “आजादी भिक्षा से नही मिलेगी ,लडकर लेनी होगी” | इसके लिए वे युवको को मैजिनी एवं गैरीबाल्डी के मार्ग का अनुसरण करने की सलाह देते थे “भारत के युवको , कमर कसकर विदेशियों को भारत से बाहर निकाल दो और भारत माता को दुखों से मुक्ति दिलाओ”|
लालाजी (Lala Lajpat Rai) ने उर्दू में “वन्दे मातरम” नाम से साप्ताहिक पत्र निकाला था लेकिन आर्यसमाजी विचारधारा के अनुसार ,राष्ट्रभाषा के रूप में वे हिंदी के ही हिमायती थे | उन्होंने “यंग इंडिया”, द पीपुल, “वन्दे मातरम” जैसे समाचार पत्रों का सम्पादन करके अपने सम्पादकीय कौशल और लेखकीय क्षमता का भी परिचय दिया | मिस कैथरीन नाम की एक अंग्रेज महिला ने अपनी पुस्तक “मदर इंडिया” में भारतीयों की कटु आलोचना करते हुए उन्हें जंगली और बर्बर चित्रित किया था | लाला लाजपत राय ने इसका मुहतोड़ जवाब देने के लिए अनहैपी इंडिया नाम से पुस्तक लिखी | इस्ससे ब्रिटिश सरकार की कुट्चाल का भांडाफोड़ हुआ और पुस्तक की सर्वत्र सराहना हुयी | इसके अलावा उन्होंने महान व्यक्तियों की अनेक छोटी छोटी जीवनियाँ लिखी कि उनसे प्रेरणा लेकर देशवासियों में राष्ट्र प्रेम और बलिदान की भावना जागे |
सन 1920 में कलकत्ता कांग्रेस की अध्य्कता लालजी ने ही की | उसके बाद जब नागपुर अधिवेशन के असहयोग का प्रस्ताव पास किया गया तभी असहयोग आन्दोलन के समय सरकारी विद्यालयों का बहिस्कार कर उन्होंने लाहौर में तिलक विद्यालय की स्थापना की थी | सन 1921 में “लोक सेवा मंडल ” बनाया , जिसने सारे देश के स्वंत्रता सैनिक तैयार किये गये | इस असहयोग आन्दोलन में ही भाग लेने पर दिसम्बर 1921 में वे गिरफ्तार कर लिए गये और उन्हें 18 मास के कारागार के सजा मिली | जील जाते समय उनके शब्द थे “यदि भारत को आजाद कर दिया जाए तो मै अपना पूरा शेष जीवन कारागार में बिताने के लिए तैयार हु” पर असहयोग आन्दोलन बंद होते ही वे अवधि से पूर्व रिहा कर दिए गये थे |
बाहर आकर क्रांतिकारी आन्दोलन को समर्थन देने के कारण लालाजी (Lala Lajpat Rai) दुबारा बंदी बना लिए गये | इस बार जेल में क्षय रोग से पीड़ित होकर उनका स्वास्थ्य गिरने लगा तो अगस्त 1923 में सरकार ने उन्हें छोड़ दिया | जेल से छुटकर लालाजी ने कुछ समय स्वास्थ्य सुधार में लगाया , फिर ठीक होते ही राजनीतिक कार्यो में सलंग्न हो गये | उन दिनों मोतीलाल नेहरु ,देशबन्धु चितरंजन दास आदि ने मिलकर स्वराज पार्टी का गठन किया था | लालाजी स्वराज्य पार्टी में सम्मिलित हो गये किन्तु मतभेद के कारण शीघ्र ही उससे पृथक भी हो गये | फिर उन्होंने अपना “स्वतंत्र कांग्रेस दल” बनाया | अपने दल के प्रतिनिधि के रूप में असेम्बली के सदस्य चुन लिए गये | समय समय पर असेम्ब्ले में दिए भाषण आज बहे याद किये जाते है |
अक्टूबर 1928 में साइमन कमीशन भारत आया | कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास करके कमीशन के बहिष्कार की घोषणा की थी इसलिए साइमन कमीशन जहा भी जाताथा वहा सभाओं और जुलूसो के द्वारा उसका बहिस्कार किया जाता था | 30 अक्टूबर को कमीशन लाहौर स्टेशन पर भी पहुचा | कमीशन का बहिस्कार करने के लिए भारी भीड़ एकत्र थी | भीड़ का नेतृत्व स्वयं लालाजी (Lala Lajpat Rai) कर रहे थे | घुड़सवार पुलिस रास्ता रोककर खडी थी | अचानक पुलिस ने रास्ता बनाने के लिए लाठीचार्ज कर दिया |
पुलिस कप्तान सांडर्स का संकेत पाकर एक गोर सिपाही ने लालाजी (Lala Lajpat Rai) पर भी लाठी से जोरदार प्रहार किया | चोट उनकी छाती पर लगी और वे धराशायी हो गये | उन्हें शीघ्र अस्पताल पहुचाया गया | उन पर जीवन रक्षा के लिए किये गये सारे प्रयत्न व्यर्थ गये और 22 नवम्बर 1928 को गर्जना करने वाला यह शेर सदा के लिए सो गया | जाते जाते भे उनकी टूटती सांसो ने कहा “मेरी छाती पर गिरा हुआ डंडा ब्रिटिश शासन पर वज्र बनकर गिरेगा और भारत से अंग्रेजी राज समाप्त हो जाएगा” उनकी बात सच निकली | उनके जाने के 19 वर्ष बाद ही अंग्रेजो के शासन का अंत हो गया | उनके शौर्य और साहस के कारण ही भारतीय जनमानस ने उन्हें “पंजाब केसरी” की उपाधि दी थी |
इतिहास में से लाला लाजपत का स्थान
1888 ई. में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. वे कांग्रेसी के नरमपंथी नेताओं और कांग्रेस की भिक्षा की नीति से काफी असंतुष्ट थे. तिलक के सामान वे भी उग्र राष्ट्रवादिता के हिमायती थी. जल्द ही तिलक और बिपिनचंद्र पाल के साथ उन्होंने अपना उग्रवादी गुट बना लिया जिसे लाल-बाल-पाल के नाम से जाना गया. इन लोगोंने कांफ्रेस की शांतिपूर्ण नीतियों का विरोधरंभ किया. फलतः, कांग्रेस के अन्दर नरमपंथियों का प्रभाव कम होने लगा और उग्रवादियों का प्रभाव बढ़ने लगा. बनारस कांग्रेस अधिवेशन (1905 ई.) में उग्रवादियों ने कांग्रेस पंडाल में भी अलग बैठक की. लाजपत राय ने भी इसमें भाग लिया. उन्होंने कहा कि अगर “भारत स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहता है तो उसको भिक्षावृत्ति का परित्याग कर स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा.“
कांग्रेस से अलग
1907 ई. में कांग्रेस के विभाजन के बाद लाला लाजपत राय कांग्रेस से अलग हो गए. कांग्रेस से अलग होकर इसी वर्ष उन्होंने पंजाब में “उपनिवेशीकरण अधिनियम” के विरोध में एक व्यापक आन्दोलन चालाया. लाला हरदयाल के साथ मिलकर उन्होंने क्रांतिकारी आन्दोलनों में भी भाग लिया. फलतः सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर भारत से निर्वासित कर दिया. निर्वासन के बाद लाजपत राय अमेरिका चले गए और वहीं से राष्ट्रीय आन्दोलन और अंग्रेजी सरकार विरोधी गतिविधियों में भाग लेते रहे. उन्होंने भारत की दयनीय स्थिति से सम्बंधित एक पुस्तक की रचना भी की जिसे सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया.
मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी...
30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी और वही हुआ भी, लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहांत हो गया।