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इंडियन कानून धारा 493, 494, 494क, 496, 497, 498, 498क // Indian Laws Section 493, 494, 494A, 496, 497, 498, 498A

भारत में घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून अमल में आ गया है जिसमें महिलाओं को दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान है। यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाएगा क्योंकि केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ किसी न किसी रूप में इसकी शिकार हैं।
घरेलू हिंसा विरोधी कानून से बड़ी उम्मीदें हैं। इसके तहत पत्नी या फिर बिना विवाह किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट, यौन शोषण, आर्थिक शोषण या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिति में कार्रवाई कर सकेगी।
अब बात-बात पर महिलाओं पर अपना गुस्सा उतारने वाले पुरुष घरेलू हिंसा कानून के फंदे में फंस सकते हैं।
इतना ही नहीं, लडक़ा न पैदा होने के लिए महिला को ताने देना,
उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाना या
लडक़ी के न चाहने के बावजूद उसे शादी के लिए बाध्य करने वाले पुरुष भी इस कानून के दायरे में आ जाएंगे।
इसके तहत दहेज की मांग की परिस्थिति में महिला या उसके रिश्तेदार भी कार्रवाई कर पाएँगे।
महवपूर्ण है कि इस कानून के तहत मारपीट के अलावा यौन दुर्व्यवहार और अश्लील चित्रों, फिल्मों कोञ् देखने पर मजबूर करना या फिर गाली देना या अपमान करना शामिल है।
पत्नी को नौकरी छोडऩे पर मजबूर करना या फिर नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के दायरे में आता है।
इसके अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का हक होगा भले ही ये मकान या फ्लैट उनके नाम पर हो या नहीं।
इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में जेल के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है।
लोगों में आम धारणा है कि मामला अदालत में जाने के बाद महीनों लटका रहता है, लेकिन अब नए कानून में मामला निपटाने की समय सीमा तय कर दी गई है। अब मामले का फैसला मैजिस्ट्रेट को साठ दिन के भीतर करना होगा।

दहेज पर कानून :

दहेज प्रतिशोध अधिनियम,1961
शादी से संबंधित जो भी उपहार दबाव या जबरदस्ती के कारण दूल्हे या दुल्हन को दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते है। उपहार जो मांग कर लिया गया हो उसे भी दहेज कहते हैं।
दहेज लेना या देना या लेने देने में सहायता करना अपराध है। शादी हुई हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता है। इसकी सजा है पाँच साल तक की कैद, पन्द्रह हजार रूञ्.जुर्माना या अगर दहेज की रकम पन्द्रह हजार रूञ्पये से ज्यादा हो तो उस रकम के बराबर जुर्माना।
दहेज मांगना अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छःमहीनों की कैद या जुर्माना।
दहेज का विज्ञापन देना भी एक अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या पन्द्रह हजार रूञ्पये तक का जुर्माना।

दहेज हत्या पर कानून :

(धारा 304ख, 306भारतीय दंड संहिता)
यदि शादी के सात साल के अन्दर अगर किसी स्त्री की मृत्यु हो जाए,
गैर प्राकृतिक कारणों से, जलने से या शारीरिक चोट से, आत्महत्या की वजह से हो जाए,
और उसकी मृत्यु से पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो,
तो उसे दहेज हत्या कहते हैं। दहेज हत्या के संबंध में कानून यह मानकर चलता है कि मृत्यु ससुराल वालों के कारण हुई है।
इन अपराधों की शिकायत कौन कर सकता हैः-
1. कोई पुलिस अफसर
2. पीडि़त महिला या उसके माता-पिता या संबंधी
3. यदि अदालत को ऐसे किसी केस का पता चलता है तो वह खुद भी कार्यवाई शुरूञ् कर सकता है।

भरण पोषण पर कानून

(धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता)
महिला का भरण पोषण
यदि किसी महिला के लिए अपना खर्चा- पानी वहन करना संभव नहीं है तो वह अपने पति, पिता या बच्चों से भरण-पोषण की माँग कर सकती।
विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860,
धारा 493 से 498 के प्रावधान करती है।
धारा 493
धारा 493 के अन्तर्गत बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह का प्रवंचना से विश्वास उत्प्रेरित करने वाले पुरुष द्वारा कारित सहवास की स्थिति में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
हर पुरुष जो किसी स्त्री को, जो विधिपूर्वक उससे विवाहित न हो, धोखे से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री के साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दण्डित किया जाएगा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।

किसी स्त्री को, जो विधिपूर्वक उससे विवाहित न हो, धोखे से यह विश्वास कारित करता है कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री के साथ सहवास कारित करना
सजा - दस वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह एक गैर-जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के न्यायधीश विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 494
धारा 494 के अन्तर्गत पति या पत्नी के जीवित रहते हुए विवाह करने की स्थिति अगर वह विवाह शून्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। बहुविवाह के लिए आवश्यक है कि दूसरी शादी होते समय शादी के रस्मो-रिवाज पर्याप्त ढंग से किये जाएं।
जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह करना अमान्य होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा।

अपवाद--इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया हो।


किसी स्त्री को विवाह के लिए विवश करने, अपवित्र करने के लिए व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना आदि।
सजा - सात वर्ष कारावास + आर्थिक दंड।

यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति (पति या पत्नी जिसके जीवनसाथी ने पुनः विवाह किया है) के द्वारा समझौता करने योग्य है।
धारा 494 क
धारा 494क में बताया गया है कि वही अपराध पूर्ववती विवाह को उस व्यक्ति से छिपाकर जिसके साथ पश्चात्‌वर्ती विवाह किया जाता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।
धारा 496

धारा 496 में बताया गया है कि विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्ण विवाहकर्म पूरा कर लेने की स्थिति में से वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
जो कोई बेईमानी से या कपटपूर्ण आशय से विवाहित होने का कर्म यह जानते हुए पूरा करेगा कि तद्द्वारा वह विधिपूर्वक विवाहित नहीं है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।


विधिपूर्ण विवाह के बिना कपटपूर्वक विवाह कर्म पूरा करना।
सजा - सात वर्ष कारावास और आर्थिक दण्ड।
यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 497
व्यभिचार की स्थिति में वह व्यक्ति जो यह कार्य करता है वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। ऐसे मामलों में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी।
जो भी कोई ऐसी महिला के साथ, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह विश्वास पूर्वक जानता है, बिना उसके पति की सहमति या उपेक्षा के शारीरिक संबंध बनाता है जो कि बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा, और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे पांच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाएगा। ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दण्डनीय नहीं होगी। 


व्यभिचार 
सजा - 5 वर्ष कारावास या आर्थिक दंड या दोनों 
यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के न्यायधीश द्वारा विचारणीय है I 
यह अपराध महिला के पति की सहमति द्वारा समझौता करने योग्य है। 
धारा 498
धारा 498 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाता है या ले आना या निरूञ्द्घ रखना है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
जो भी कोई किसी विवाहित स्त्री को, जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है, और जिसका अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है, या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष के पास से, या किसी ऐसे व्यक्ति के पास से, जो उस पुरुष की ओर से उस स्त्री की देखरेख करता है, को फुसलाकर इस आशय से ले जाए या छिपाए या उस स्त्री को निरुद्ध करे, कि वह स्त्री किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संभोग करे, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा।


विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से फुसलाकर ले जाना, या निरुद्ध रखना।
सजा - दो वर्ष कारावास या आर्थिक दंड या दोनों।

यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध पीड़ित पति और पत्नी के द्वारा समझौता करने योग्य है।
धारा 498 क
सन्‌ 1983 में भारतीय दण्ड संहिता में यह संशोधन किया गया जिसके अन्तर्गत अध्याय 20 क, पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में, अन्त स्थापित किया गया इस अध्याय के अन्तर्गत एक ही धारा 498-क है, जिसके अन्तर्गत बताया गया है कि किसी स्त्री के पति या पति के नातेदारों द्वारा उसके प्रति क्रूरता करने की स्थिति में दण्ड एवं कारावास का प्रावधान है इसके अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, उसे कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
आए दिन हम ख़बर पढ़ते हैं कि दहेज़ प्रताड़ना का केस झूठा साबित हुआ। भारत में दहेज़ हत्या एवं प्रताड़ना से महिलाओं को बचाने के लिए 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498 अ को जोड़ा गया। इसका उद्देश्य दहेज जैसी सामाजिक बुराई एवं ससुराल में होने वाले अत्याचारों से महिलाओं को संरक्षण देना था। इस धारा के अंतर्गत महिला की केवल एक शिकायत पर बिना किसी अन्य विवेचना के पुलिस पति सहित अन्य ससुराल वालों पर कार्रवाई कर देती है। कुछ प्रकरणों में यह धारा महिलाओं के लिए ससुरालों वालों को ब्लैकमेल करने का भी जरिया साबित हुई। 

अदालतों में आज भी 498अ के कई मुकदमे लंबित हैं और कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें यह माना गया कि इस धारा का महिला पक्ष द्वारा हुआ है। यह कानून आपराधिक है परन्तु इसका स्वरूप पारिवारिक है। पारिवारिक किसी भी झगड़े को दहेज़ प्रताड़ना के विवाद के रूप में परिवर्तित करना अत्यंत ही सरल है। एक विवाहिता की केवल एक शिकायत पर यह मामला दर्ज़ होता है। परिवार के सभी सदस्यों को अभियुक्त के रूप में नामज़द कर दिया जाता है और सभी अभियुक्तों को जेल में भेज दिया जाता है क्योंकि यह एक गैर ज़मानती, संज्ञेय और असंयोजनीय अपराध है।
कई पुरुष इस धारा में मुकदमे लड़ रहे हैं और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिल पा रही है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ प्रकरणों में धारा 498अ के दुरुपयोग की बात कही है। सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य 2005 के मुकदमे में सर्वोच्च अदालत ने 498अ के दुरुपयोग को लीगल टेरेरिज्म भी कहा है। 
यह बात सच है कि महिला उत्पीड़न और दहेज़ के खिलाफ एक सख्त कानून की ज़रूरत हमें है, लेकिन इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए भी कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। आज कितने ही पुरुष इस धारा का शिकार हुए हैं और उनका जीवन खराब हुआ है। कई संगठन इस धारा के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। 
भारत सरकार ने भी फर्जी मुकदमों की बढ़ती संख्या देखते हुए धारा 498अ में संशोधन की आवश्यकता को समझा है, लेकिन फिलहाल इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के अंतर्गत सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498 ए के हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। अब दहेज प्रताड़ना के मामले पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी के पास जाएंगे, जो उस पर अपनी रिपोर्ट देगी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस देखेगी कि कार्रवाई की जाए या नहीं।
शीर्ष अदालत द्वारा जारी इन निर्देशों के लागू होने के छह माह बाद 31 मार्च 2018 को विधिक सेवा प्राधिकरण परिवर्तन करने के लिए सुझाएगा। मामले की सुनवाई अप्रैल 2018 में होगी।  सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष पूर्व एक फैसले में आदेश दिया था कि दहेज प्रताड़ना के मामले में पुलिस आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार नहीं करेगी। 
जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने उत्तरप्रदेश के एक मामले में दिए फैसले में कहा कि धारा 498ए को कानून में रखने का (1983 संशोधन) मकसद पत्नी को पति या उसके परिजनों के हाथों होने वाले अत्याचार से बचाना था। वह भी तब जब ऐसी प्रताड़ना के कारण पत्नी के आत्महत्या करने की आशंका हो। 
अदालत ने कहा कि यह चिंता की बात है कि विवाहिताओं द्वारा धारा 498ए के तहत बड़ी संख्या में मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। स्थिति को हल करने के लिए हमारा मत है कि इस मामले में सिविल सोसाइटी को शामिल किया जाए, ताकि न्याय के लिए प्रशासन को कुछ मदद मिल सके। यह भी देखना होगा कि जहां वास्तव में समझौता हो गया है, वहां उचित कदम उठाया जाए। इससे पक्षों को इसे समाप्त करने के लिए हाईकोर्ट न जाना पड़े।
हमारे आसपास का समाज 498 अ के दुरुपयोग के किस्से-कहानियों से भरा पड़ा है। जो परिवार इसमें उलझे हुए हैं, वे अपना दर्द खुद ही समझते हैं। कई पुरुष अपनी नौकरी छोड़कर इस उम्मीद में कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रहे हैं कि एक दिन उन्हें इंसाफ मिलेगा। इस धारा में फर्जी मुकदमों का आलम यह है कि न्यायालय भी सबसे पहले यह जानने का प्रयास करते हैं कि कहीं आरोप मनगढ़ंत तो नहीं? 
किसी भी तरह की कानूनी लड़ाई लड़ने में बहुत धैर्य रखना पड़ता है और अगर कोई व्यक्ति 498अ जैसी धारा में केस का सामना कर रहा है तो उसे और भी अधिक सहनशक्ति दिखानी होगी। अब तक 498अ के जिन पीड़ित पुरुषों ने केस जीते हैं, उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और खुद को निर्दोष साबित किया। 
धारा 498 अ के केस में आरोप के बिंदु अलग अलग हो सकते हैं। अपने वकील के माध्यम से सबूत सहित खुद पर लगे सभी आरोपों को झूठा साबित कीजिए। ‍जब तक कि इस कानून में पुरुषों के पक्ष को देखते हुए संशोधन नहीं होते, तब तक इस लंबी प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष मज़बूती से रखें और धैर्य रखते हुए खुद को निर्दोष साबित करें।
क्रूरता दो तरह की हो सकती है – मानसिक तथा शारीरिक
शारीरिक क्रूरता का अर्थ है महिला को मारने या इस हद तक शोषित करना कि उसकी जान, शरीर या स्वास्थ्य को खतरा हो।
मानसिक क्रूरता जैसे- दहेज की मांग या महिला को बदसूरत कहकर बुलाना इत्यादि।
किसी महिला या उसके रिश्तेदार या संबंधी को धन-संपति देने के लिये परेशान किया जाना भी क्रूरता है।
अगर ऐसे व्यवहार के कारण औरत आत्महत्या कर लेती है तो वह भी क्रूरता कहलाती है।
यह धारा हर तरह की क्रूरता पर लागू है चाहे कारण कोई भी हो केवल दहेज नहीं।