भारतीय वित्तीय बाजारों में इन दिनों उथल-पुथल का माहौल है। डेट और इक्विटी दोनों क्षेत्रों में निवेशक और इश्यू लाने वाले दोनों दबाव में हैं। इस दबाव की तात्कालिक वजह है आईएलऐंडएफएस की ऋण अदायगी में चूक। आईएलऐंडएफएस देश के सबसे बड़े वित्तीय समूहों और बुनियादी ढांचा डेवलपरों में से एक है। इसके पास विशाल गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) और बिजली, सड़क और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बुनियादी परिसंपत्तियां हैं। इसके अंशधारकों में एलआईसी, भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी, एआईडीए और जापान की ओरिक्स जैसी बड़ी कंपनियां हैं। इस कंपनी और इसकी अनुषंगी कंपनियों पर 90,000 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। इन कंपनियों को अभी हाल तक एए प्लस रेटिंग हासिल थी और ये बॉन्ड जॉरी करने वालों में अग्रणी थे, इसने कॉर्पोरेट जमा और अंतर कॉर्पोरेट जमा भी किए।
सितंबर में कंपनी के कई हिस्से ऋण अदायगी में चूक कर गए। इन चूक की वजह से बाजार में वित्तीय दबाव उत्पन्न हो चुका है। पहली बात तो यह कि एए प्लस रेटिंग वाला उपक्रम 10 दिन में डिफॉल्ट रेटिंग वाला कैसे हो सकता है? रेटिंग एजेंसियां क्या कर रही थीं? इन रेटिंग की विश्वसनीयता को देखते हुए डेट निवेशकों के बीच जायज चिंता यह है कि अगला नंबर किसका है? क्या ऐसे अन्य बड़े संस्थान भी हैं जहां रेटिंग के साथ ऐसा खिलवाड़ किया गया हो? डेट निवेशक जोखिम लेने से बच रहे हैं। इन बातों से आशंका और अफवाह का माहौल तैयार हो गया है। किसी भी कंपनी के संकट में आने की चर्चा भी छिड़ी तो निवेशक किसी भी कीमत पर बिकवाली कर निकल भागेंगे।
अधिकांश निवेशकों ने अपनी राय आर्थिक गुणाभाग के बजाय रेटिंग के आधार पर बनाई थी, अब वे आशंका के साये में जी रहे हैं। दूसरी बात यह कि म्युचुअल फंडों के पास आईएलऐंडएफएस के करीब 5,000 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड हैं। इन बॉन्ड का अवमूल्यन होगा। इससे फंडों के एनएवी पर बुरा असर होगा। इसकी कोई जानकारी नहीं है कि किसके पास आईएलऐंडएफएस के किस मूल्य के कागजात हैं? निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं। ये डेट फंड नकदी जुटाने में लगे हैं। मिड कैप शेयरों की तरह भारतीय कॉर्पोरेट बॉन्ड भी तनाव के वक्त नकदीरहित हो जाते हैं। इन्हें कौन, किस कीमत पर खरीदेगा?
इस कारोबार में हर कोई एक तरफ है। इससे मूल्य और प्रतिफल के आवंटन में फर्क आ रहा है। एनबीएफसी प्रपत्र इसके केंद्र में हैं क्योंकि बीते कुछ सालों में वे बॉन्ड के सबसे बड़े जारीकर्ता रहे हैं। हर किसी के पास ये बॉन्ड हैं। डेट फंड का अधिकांश पैसा कॉर्पोरेट और उच्च मूल्य वर्ग के निवेशकों का है। उन्हें घाटे की आदत नहीं है। अगर वे थोक में पैसा निकालते हैं तो एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। अगर म्युचुअल फंड एनबीएफसी से क्रय नहीं करेंगे तो कौन करेगा? शेयर बाजार एनबीएफसी के शेयरों को प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि उनकी वृद्धि और उनका मुनाफा अनुमान दोनों अब सवालों के घेरे में हैं। अधिकांश एनबीएफसी को अपनी वृद्धि दर धीमी करने के लिए भी कुछ न्यूनतम आवश्यकता होगी। अगर वे डेट बाजार की फंडिंग नहीं कर सकते तो बैंक तो एक सीमा तक ही अंतर की भरपाई कर सकते हैं। न्यूनतम आधार पर भी देखें तो उनके फंड की लागत 125-150 आधार अंक बढ़ी है। उच्च चर वाले शेयर वृद्धि और मार्जिन अनुमान को लेकर संवेदनशील हैं। दोनों में किसी भी तरह का नकारात्मक संशोधन इनके लिए ठीक नहीं। बाजार अब इस बात पर यकीन नहीं करते कि अधिकांश एनबीएफसी वर्षों तक 30 प्रतिशत की अधिक की दर से विकास कर सकते हैं।
इसमें कुछ व्यवस्थागत मसले भी हैं। हम सभी जानते हैं कि सरकारी बैंकों की हालत खस्ता है। वे नया ऋण नहीं दे सकते। माना जाता था कि निजी बैंक और एनबीएफसी इस कमी को पूरा करेंगे। परंतु अब जबकि अर्थव्यवस्था प्रगति पर है, ऋण की मांग बढ़ रही है, तभी ऐसी घटनाएं सामने आईं। अगर एनबीएफसी को अपने ऋण को धीमा करना पड़ा तो क्या चंद निजी बैंक इस कमी को पूरा कर पाएंगे? यह आसान नहीं है। यह आकलन इसलिए क्योंकि वाहन और आवास समेत कई क्षेत्रों में उपभोक्ता ऋण वृद्धि के लिए अहम है। देश की वृहद आर्थिक परिस्थितियां इस वर्ष दबाव में रही हैं। बढ़ती तेल कीमतें, चालू खाते का घाटा, कमजोर रुपया, खराब होती राजकोषीय स्थिति और बढ़ती कीमतों ने वृहद अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला है। डेट बाजार में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति दबाव बढ़ा रही है। अगर हालात जल्दी स्थिर नहीं हुए तो हमें देश की वृद्धि दर पर इसका असर देखने को मिलेगा।
क्या किया जाए?
आरबीआई को शीघ्र नकदी डालनी होगी। प्रक्रिया शुरू भी हो गई है। ऋण बाजार सिमट रहा है, इसके नकदी के लिए बहुत खराब परिणाम होंगे। इसका हमें जल्दी और ताकतवर ढंग से मुकाबला करना होगा। नकदी और रीपो सुविधाओं को डेट म्युचुअल फंड के लिए जुटाना होगा। हम घबराहट में जबरन बिकवाली होने नहीं दे सकते। इससे अन्य फंडों के बॉन्ड कमजोर होंगे। इससे नुकसान होगा और बिकवाली का सिलसिला बढ़ता चला जाएगा। जिन संस्थानों में भरोसे की कमी के चलते प्रतिफल का नुकसान हुआ, वहां हमें तत्काल भरोसा बहाल करना होगा।
आरबीआई को तत्काल बहीखातों की जांच करते हुए परिसंपत्ति गुणवत्ता और जवाबदेही प्रोफाइल को लेकर खुलासे करने चाहिए। इन संस्थानों को भी चाहिए कि वे हर कीमत पर डेट बाजार के निवेशकों को आकर्षित करने के प्रयास करें। इन निवेशकों को दबाव के वक्तनेतृत्व और दिशा प्रदान करने वाला माना जाता है। अगर वे आते हैं तो दाग-धब्बों से निजात मिलती है। काफी हद तक वित्तीय संकट के दौर में गोल्डमैन सैक्स में हुए निवेश की तरह। वह गोल्डमैन सैक्स के लिए बहुत महंगा सौदा था लेकिन इससे भरोसा कायम करने में मदद मिली। ताजा शेयर जारी करने और नकदीकरण कम करने से भी बाजार का भरोसा बहाल करने में मदद मिलेगी। किसी भी वित्तीय संस्थान के लिए भरोसा बहुत मायने रखता है। बिना भरोसे के कोई भविष्य ही नहीं है। इस संकट से सही ढंग से नहीं निपटा गया। आईएलऐंडएफएस में जैसे निवेशक हैं उन्हें देखकर लगता है कि यह डिफॉल्ट की दिशा में कैसे बढ़ी? अगर वे अब नकदी लगाने को तैयार हैं तो देर किस बात की है? बोर्ड में बैठे अंशधारक कर क्या रहे थे? रेटिंग समितियां एएप्लस रेटिंग को कैसे उचित ठहरा रही थीं। इस मामले में जवाबदेही और प्रशासन की नाकामी साफ नजर आती है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
सौजन्य – बिजनेस स्टैंडर्ड।