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भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य // Fundamental duties of citizens of India

  भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य

‘‘यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने अधिकार का ही ध्यान रखे एवं दूसरों के प्रति कर्त्तव्यों का पालन न करे तो शीध्र ही किसी के लिए भी अधिकार नहीं रहेंगे।’’

सरदार स्वर्ण सिंह समिति    की अनुशंसा पर संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई)० के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया. इसे  रूस  के संविधान से लिया गया है
सरदार स्वर्ण सिंह समिति ने कुल 8 मूल कर्तव्यों की सिफारिश की थी। किन्तु संसद ने इसमें दो मूल कर्तव्य और जोड़कर 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा 10 मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा। मौलिक कर्तव्य स्वेच्छिक हैं। किसी व्यक्ति को मौलिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। अर्थात मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की कोई विधिक बाध्यता नहीं है।
         मूल कर्तव्यों को रूस के संविधान से लिया गया है। अनुच्छेद-51क भारत के नागरिकों को निम्नलिखित मूल कर्तव्य प्रदान करता है।
भारत में 26 नवंबर को हर साल संविधान दिवस मनाया जाता है, क्योंकि आज ही के दिन 1949 को संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को स्वीकृत किया गया था, जो 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया। भारत के संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कुछ मौलिक कर्तव्यों के बारे में भी बताया गया है।
42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा हमारे वर्तमान संविधान के भाग 4 में मौलिक कर्तव्य शामिल किये थे। वर्तमान में अनुच्छेद 51 A के तहत हमारे संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं जो कानून द्वारा वैधानिक कर्तव्य हैं। इसे रूस के संविधान से लिया गया है। मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिए भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। मौलिक कर्तव्य की संख्या 11 है, जो इस प्रकार हैं:
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखें।
4. देश की रक्षा करें।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करें।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करें।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करें।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन)

                            मौलिक कर्त्तव्यों का महत्व - 


अधिकारों और कत्र्तव्यों का घनिष्ठ संबंध सदैव से रहा है। अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के ही पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अस्तित्वहीन हो जाता है। कर्त्तव्यों के बिना अधिकारों की मांग करना नीतिसंगत और न्यायोचित नहीं है।

वाइल्ड के अनुसार ‘‘केवल कर्त्तव्यों के संसार में ही अधिकारों की प्रतिष्ठा है।’’ 
    संवधान के 42वें संशोधन द्वारा नागरिकों के लिए कत्र्तव्यों का समावेश करके हमारे संविधान की एक बहुत बड़ी कमी को पूरा किया गया है। मौलिक कत्र्तव्यों को निम्नवत् आंका जा सकता है-
    1. समंप्रभुत्ता तथा अखण्डता की रक्षा - मौलिक कर्तव्यों द्वारा नागरिकों को यह निर्देश दिया गया है कि वे देश की सम्प्रभुता तथा अखण्डता की रक्षा करें। यदि सभी नागरिक निष्ठा एवं र्इमानदारी से अपने इस कर्तव्य का पालन करने लग जायें तो भारत की सम्प्रभुता और अखण्डता चिरस्थायी बनी रहेगी। 
    2. देश की प्रगति में सहायक - मौलिक कर्तव्यों द्वारा नागरिकों को आहन किया गया है कि वे संकट के समय देश की सुरक्षा हेतु तन-मन धन से अपने योगदान दें। 
    3. देश की प्रगति में सहायक - नागरिकों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाये जाने से देश प्रगति की दिशा में आगे बढ़ेगा और विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ जायेगा। 
    4. प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा - भारत में प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने में लोग कोर्इ संकोच नहीं करते। मौलिक कर्तव्यों में दिये गये निर्देश के पालन से प्राकृतिक तथा सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा होगी। प्रदूषण दूर होगा, जिससे स्वास्थ्य-रक्षा होगी, साथ ही देश की प्रगति होगी। 
    5. लोकतन्त्र को सफल बनाने में सहायक - भारत द्वारा अपनायी गयी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक नागरिक लोकतांत्रिक संस्थाओं का आदर न करें। मौलिक कत्र्तव्यों को संविधान में स्थान दिये जाने से लोग इन संस्थाओं का आदर करेंगे, जिससे लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था सुदृढ़ होगी। 
    6. संस्कृति की रक्षा और संरक्षण - भारत में समन्वित संस्कृति होने के कारण कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न प्रकार की गौरवशाली परम्पराएं है। मौलिक कर्तव्यों के पालन से ही विभिन्न प्रकार की इन परम्पराओं में समन्वय स्थापित कर सकेंगे और उनका संरक्षण कर सकेंगे। इससे भारत की सांस्कृतिक एकता सुदृढ़ होगी। 
    7. विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास - मौलिक कर्तव्यों में भारतीय नागरिकों को सद्भावना तथा भार्इचारे की भावना बनाये रखने का निर्देश दिया गया है, साथ ही हिंसा से दूर रहने का परामर्श दिया गया है। ये निर्देश और परामर्श मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और विश्व-बंधुत्व की भावना को विकसित करने में सहायक सिद्ध होंगे। 
    8. स्त्रियों का सम्मान - मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करने से समाज में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त होगा, जिससे उनकी गरिमा में वृद्धि होगी और लिंग संबंधी भेदभाव समाप्त होकर समानता स्थापित होगी।
    उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि हमारे मौलिक कर्तव्य संविधान के सर्वाधिक नैतिक और महत्वपूर्ण अंग है। इन कर्तव्यों के पालन से ही हमारे लोकतंत्र और गणतंत्र की नींव सुदृढ़ होगी। इन कर्तव्यों से ही हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सकेगी। मौलिक कर्तव्यों का पालन करने पर बल देते हुए.

    डॉ बेनी प्रसाद के अनुसार करने योग्य कार्य ‘कर्त्तवय’ कहलाते है किसी भी समाज का मूल्यांकन करते हुए ध्यान केवल अधिकारों पर ही नहीं दिया जाता है वरन् यह भी देखा जाता है कि नागरिक अपने कर्त्तव्यों का पालन करते है या नहीं।