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मुख्य लेख- किसानों की चिंता // किसान मार्च में अकेले ‘रवीश कुमार’ ही दिखे, बाकी पत्रकार ‘मोदी’ के डर से बिल में छिप गए : सोशल मिडिया

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। जिसका काम शोषितों और वंचितों की आवाज़ उठाकर उन्हें इंसाफ़ दिलाना है। लेकिन मीडिया इन दिनों शोषितों की आवाज़ बनने के बजाय सत्ता की आवाज़ बन गया है।
दिल्ली में हज़ारों की तादाद में किसान अपनी समस्याओं को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया में इसकी कोई खास चर्चा सुनाई नहीं दे रही। किसी भी बड़े न्यूज़ चैनल पर किसानों की यह रैली देखने को नहीं मिल रही, न ही मेनस्ट्रीम मीडिया का कोई बड़ा एंकर रैली को सीधे तौर पर कवर करता नज़र आ रहा है।
देश के कई राज्यों से जुटे यह किसान दिल्ली की सड़कों पर चीख़-चीख़ कर अपनी मांगों को पूरा किए जाने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उनकी यह गुहार न तो सरकार के कानों तक पहुंच रही है और न ही मेनस्ट्रीम मीडिया किसानों की आवाज़ को बुलंद करने में कोई दिलचस्पी दिखा रहा है।

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अब सवाल यह उठता है कि मीडिया किसानों के आंदोलन को इस तरह नज़रअंदाज़ क्यों कर रहा है। अयोध्या में VHP की रैली को दिनों-रात कवर करने वाले न्यूज़ चैनल किसानों के आंदोलन को क्यों जगह नहीं दे रहे।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हिंदुत्ववादी संगठनों के जमावड़े के मद्देनज़र कई दिनों तक अयोध्या से लाइव कवरेज करने वाले एंकर भी किसान मार्च पर ख़ामोश नज़र आ रहे हैं। किसान दिल्ली की सड़कों से यह मांग कर रहे हैं कि सरकार संसद में विशेष सत्र बुलाकर किसानों के कर्ज़ और उपज की लागत को लेकर प्राइवेट बिल पारित करवाए।
पिछले कुछ महीनों में यह तीसरी बार है जब देश के अन्नदाताओं को राजधानी में बैठे सत्ताधीशों को जगाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा है। हैरानी की बात तो यह है कि किसान लगातार अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी मांगों पर ज़रा भी गंभीरता नहीं दिखाई है।
शायद सरकार को किसानों का यह आंदोलन इसलिए भी परेशान नहीं करता क्योंकि इसकी आवाज़ मीडिया में सुनाई नहीं देती। मीडिया अयोध्या में इकट्ठा होने वाले हुड़दंगियों को तो जमकर दिखाता और सराहता है, लेकिन किसानों के मामले में चुप्पी साध लेता है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि इसरामलीला मैदान से चलकर किसान संसद मार्ग पहुंच गए। सब किसान एक सुर में बार बार कह रहे रहे थे अगर मोदी सरकार बड़े पूंजीपतियों का पैसा माफ़ कर सकती है तो हमारा क्यों नहीं।
हरियाणा हो चाहे महाराष्ट्र या फिर पंजाब सभी राज्यों की मांग किसानों की सिचांई के लिए पानी और उसके लिए हम किसानों को सस्ती बिजली दी जाए।
देशभर से किसान अपनी आवाज बुलंद करते हुए तरह के तरह के नारे लगाते हुए संसद मार्ग पहुंचे थे। किसानों की इस भीड़ ने विपक्ष के नेताओं को ध्यान खींच लिया।
 अंधेरे में रौशनी की कोई किरण नहीं। यहां एक चैनल एनडीटीवी भी है, जो लगातार किसान आंदोलन की कवरेज कर रहा है। बता दें कि यह वही चैनल है जिसपर बीजेपी का कोई भी प्रवक्ता आने से कतराता है। इस न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम एंकर रवीश कुमार लगातार किसानों की समस्याओं को उनके बीच जाकर उठाते नज़र आ रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी रवीश कुमार की इस कवरेज की जमकर तारीफ हो रही है। आनंद नाम के ट्विटर यूज़र ने लिखा, “किसानो के बीच मे रवीश कुमार ही अकेले पत्रकार दिखे बाकी तो मोदी के पजामे मे छिप गये”।




मगर एक सवाल ये भी उठता है कि केंद्र में बीजेपी सरकार के जाने से क्या किसानों की समस्या हल हो जायेगी। क्योंकि किसानों का भला तो मोदी सरकार ने भी करने का वादा किया था मगर सरकार बनने के बाद उसे भी अपना वादा याद नहीं रहा।
वैसे ही अगली सरकार भी किसानों को भूल उद्योगपतियों को खुश करने में लग जाएगी या फिर उसे किसान याद रहेंगें। और वो स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करेगी जो मरते किसानों के लिए संजीवनी साबित हो सकती है।