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Zero FIR क्या होता है? क्या अंतर होता है FIR और Zero FIR में, किसी भी थाने में हो सकती है दर्ज

Zero F.I.R क्या होता है? 
जीरो F.I.R को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि किस तरह के मामलों में केस दर्ज की जा सकती है. अपराध दो तरह के होते हैं. पहला असंज्ञेय अपराध ( Non-Cognizable Offence) और दूसरा संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence).
1. असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence)
असंज्ञेय अपराध से तात्पर्य मामूली अपराध अर्थात मामूली मारपीट आदि से है. इसमें सिधे तौर पर F.I.R दर्ज नहीं की जा सकती है, बल्कि शिकायत को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है, फिर मजिस्ट्रेट के द्वारा आरोपी को समन जारी किया जाता है तथा उसके बाद मामला शुरू होता है. इस तरह के मामलों में जुरिस्डिक्शन हो या नहीं हो किसी भी स्थिति में केस दर्ज नहीं हो सकता.
2. संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence)
संज्ञेय अपराध से तात्पर्य गंभीर किस्म के अपराध से है अर्थात मर्डर, रेप, गोली चलाना आदि संज्ञेय अपराध होता है. इस तरह के मामलों में सीधे F.I.R दर्ज करायी जा सकती है. Cr.P.C की धारा 154 पुलिस को संज्ञेय अपराध में सीधे तौर पर F.I.R दर्ज करने का निर्देश देता है. यदि पिड़ित के साथ किया गया अपराध उस पुलिस थाने के Jurisdiction में नहीं हुआ हो तब भी पुलिस को F.I.R दर्ज करना होगा. कोई भी पिड़ित व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में पहुँचता तो पुलिस कि पहली ड्यूटी होती है कि वह F.I.R दर्ज कर उसकी छानबीन करे तथा सबूतों को एकजुट करें.
जीरो F.I.R -
निर्भया केस के बाद बना एक्ट
जीरो एफआईआर का कॉन्टेप्ट दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद आया. निर्भया केस के बाद देशभर में बड़े लेवल पर प्रोटेस्ट हुआ था. अपराधियों के खिलाफ सिटीजन सड़क पर उतरे थे. इसके बाद जस्टिस वर्मा कमेटी रिपोर्ट की रिकमंडेशन के आधार पर एक्ट में नए प्रोविजन जोड़े गए. दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद न्यू क्रिमिनल लॉ (अमेडमेंट) एक्ट, 2013 आया.
जीरो FIR से तात्पर्य जब पिड़ित के खिलाफ हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है तो यह zero FIR होता है. इसमें घटना की अपराध संख्या दर्ज नहीं की जाती. संज्ञेय अपराध होने की दशा में घटना की FIR किसी भी जिले के किसी भी पुलिस थाने में दर्ज कराई जा सकती है. यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता इसलिए तत्काल वाद संख्या नहीं दिया जाता है.
FIR दर्ज करते समय आगे की कार्यवाई को सरल बनाने हेतु इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसकी शिकायत घटनास्थल वाले पुलिस थाने में ही हो परंतु कभी कभी पिड़ित को घटनास्थल के किसी बाहरी पुलिस थाने में भी FIR दर्ज करने की जरूरत पड़ जाती है. पिड़ित व्यक्ति अविलंब कार्रवाई हेतु किसी भी पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है.
उद्देश्य
Zero FIR का उद्देश्य यह है कि किसी भी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कर मामले की जांच शुरू की जाए और सबूत एकजुट किए जाए क्योंकि शिकायत दर्ज नहीं होने की स्थिति में सबूत नष्ट होने का खतरा रहता है.
कब करें Zero FIR?
हत्या, एक्सीडेंट, रेप जैसे अपराध कहीं भी हो सकती है. अतः ऐसे मामलो में तुरंत कार्रवाई हेतु किसी भी पुलिस थाने में FIR दर्ज कराई जा सकती है, क्योंकि बिना FIR के पुलिस घटना से संबंधित कार्यवाई करने के लिए बाध्य नहीं होता. FIR दर्ज होने के बाद कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है.
कैसे करें Zero FIR?
सामान्य FIR की तरह ही Zero FIR भी लिखित व मौखिक में कराई जा सकती है. यदि आप चाहें तो पुलिस द्वारा रिपोर्ट को पढ़ने का अनुरोध कर सकते हैं.
क्या है जीरो एफआईआर के फायदे
इस प्रोविजन के बाद इन्वेस्टिगेशन प्रोसीजर तुरंत शुरू हो जाता है. टाइम बर्बाद नहीं होता. इसमें पुलिस 00 सीरियल नंबर से एफआईआर लिखती है. इसके बाद केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है. जीरो FIR से अथॉरिटी को इनिशिएल लेवल पर ही एक्शन लेने का टाइम मिलता है.
यदि कोई भी पुलिस स्टेशन जीरो एफआईआर लिखने से मना करे तो पीड़ित सीधे पुलिस अधिक्षक को इसकी शिकायत कर सकता है और अपनी कम्प्लेंड रिकॉर्ड करवा सकता है. एसपी खुद इस मामले में इन्वेस्टिगेशन कर सकते हैं या फिर किसी दूसरी अधिकारी को निर्देशित कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि कोई भी पुलिस ऑफिसर एफआईआर लिखने से इंकार करे तो उस पर डिसिप्लिनरी एक्शन लिया जाए. कोई व्यक्ति चाहे तो वह ह्युमन राइट्स कमीशन में भी जा सकता है.