पब्लिक स्पीकिंग एक ऐसी स्किल है जो करियर में काफी काम आ सकती है।
कॉलेज से लेकर पेशेवर जीवन में पब्लिक स्पीकिंग का सामना स्टूडेंट्स व प्रोफेशनल्स को करना पड़ता है, जहां लोगों के बीच बोलने का विचार ही कइयों को बेचैन कर देता है। असल में पब्लिक स्पीकिंग एक ऐसी स्किल है जो करियर में काफी काम आ सकती है, लेकिन इसमें दक्ष होने पर ही यह आपको फायदा दे सकती है। सही अभ्यास और अनुभव आपको एक कुशल वक्ता बना सकते हैं।
तैयारी : स्पीच के लिए पहले ही अपने दिमाग को तैयार कर लें। अक्सर लोग पब्लिक स्पीकिंग से पहले आत्म संदेह और नकारात्मक विचारों से भरने लगते हैं और अपना फोकस खो देते हैं। इसके बजाय जो स्पीकर अपने टॉपिक पर ध्यान देते हैं उन्हें बेहतर परिणाम मिलते हैं। जितना ज्यादा आप अपने विषय या टॉपिक के बारे में जानते होंगे उतना ही स्पीकिंग के डर से दूर रहेंगे। ऑडियंस के साथ जुड़ने की काबिलियत असल में आत्मविश्वास से आती है। स्पीच से पहले रिहर्सल करें। टाइम मैनेजमेंट से लेकर समय बचने की स्थिति के लिए बैक अप मटीरियल भी तैयार रखें।
स्पष्ट हो कंटेंट : आपका कंटेंट स्पष्ट, दिलचस्प और संक्षिप्त होना चाहिए। शुरुआती कुछ सेकंड में ही आपको श्रोताओं का पूरा अटेंशन मिलता है इसलिए शुरुआत प्रभावशाली होनी चाहिए। अगर कंटेंट बोरिंग होगा तो आप उन्हें बांध नहीं पाएंगे। इस सीमित समय में ही आपको न केवल उनका अटेंशन हासिल करना होगा, बल्कि अपनी स्पीच पर भी पकड़ बनानी होगी। याद रखें आपका कंटेंट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। भाषा सरल और व्याकरण सही हो। चाहें ताे कंटेंट तैयार करके किसी अनुभवी को दिखा लें और उनसे राय लें।
प्रेजेंटेशन : जब भी किसी पब्लिक प्लेटफॉर्म पर बोल रहें हों तो प्रेजेंटेशन की मदद लें। यह छोटा, सरल और आपकी बात समझाने में सक्षम होना चाहिए। इसमें इन्फोग्राफिक, बुलेट्स व नंबर्ड लिस्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे प्रजेंटेशन दिलचस्प बने। सिर्फ स्लाइड्स के रूप में प्रजेंटेशन को न पढ़ें, बल्कि अपनी बात को पूरा स्पष्ट करें।
बॉडी लैंग्वेज : अपनी स्पीच को लेकर आप अगर नर्वस हैं तो आपकी बॉडी लैंग्वेज से यह बात सामने आएगी। स्पीच से पहले बेचैनी होना सहज है, लेकिन इसे तनाव में न बदलने दें। हाथों को चटकाना, जल्दी- जल्दी बोलना, बार-बार पैरों की ओर देखना या चक्कर काटना आपकी बेचैनी को दर्शाएंगे। शांत और रिलेक्स्ड प्रजेंटर अपने श्रोताओं को बेहतर ढंग
से हैंडल कर पाता है।
से हैंडल कर पाता है।
आत्मविश्वास: प्रजेंटेशन के समय आत्मविश्वास की कमी और नर्वस होना दो अलग-अलग बातें हैं। अपने कंटेंट और क्षमताओं पर यदि आपको भरोसा नहीं है तो आपको आत्मविश्वास की कमी का सामना करना पड़ेगा जबकि नर्वसनेस लोगों की भीड़ से उत्पन्न होने वाले डर के कारण होती है। कभी-कभी आत्मविश्वास की कमी और नर्वसनेस एक साथ हावी होने लगते हैं। ऐसे में खुद पर भरोसा रखें। याद रखें यह आपका प्रजेंटेशन है जिसे आपने खुद तैयार किया है, कोई अन्य इसे आपसे ज्यादा बेहतर नहीं प्रस्तुत कर सकता। आप खुद पर भरोसा नहीं कर पाएंगे तो श्रोता ऐसा किस तरह कर पाएंगे?
श्रोताओं से संवाद: किसी भी प्रजेंटेशन में संवाद एक तरफा नहीं होता। अगर सिर्फ आप ही बोलते चले जाएंगे तो श्रोताओं से कनेक्ट नहीं हो पाएंगे। यह जानना भी मुश्किल होगा कि ऑडियंस आपकी बात समझ पा रहे हैं या नहीं। इसलिए जरूरी है कि आप उनसे बात करें, सवाल पूछें, टॉपिक से उन्हें जोड़ें रखें। आप तब तक ही उनका अटेंशन हासिल कर पाएंगे जब तक कि उन्हें आपके प्रजेंटेशन में दिलचस्पी होगी।
वॉइस मॉड्यूलेशन: एक अच्छे प्रजेंटेशन के लिए वॉइस मॉड्यूलेशन यानी सुर में उतार-चढ़ाव जरूरी है। महत्वपूर्ण पॉइंट्स के लिए जोर डालना होगा ताकि ऑडियंस उस पर विचार कर पाएं। वॉइस मॉड्यूलेशन के लिए अभ्यास और अनुभव जरूरी है।
सवालों के लिए गुंजाइश : आपकी स्पीच के तीन हिस्से हो सकते हैं। इंट्रोडक्शन, बॉडी और क्वेश्चन-आंसर सेशन। श्रोताओं के सवाल फीडबैक का बेहतरीन जरिया हो सकते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि ऑडियंस ने आपकी स्पीच को सुना है। आत्मविश्वास के साथ उनके सवालों के जवाब दें। जवाब संक्षिप्त व टू दी पॉइंट रखें।
समाप्ति: स्पीच खत्म होते ही सीधे स्टेज से न उतरें। लोगों से फीडबैक लेने की कोशिश करें। भविष्य में संपर्क के लिए अपना बिजनेस कार्ड या ईमेल दे सकते हैं।