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पति हो या पत्नी, दोनों को पता होने चाहिए ये 5 कानूनी फैसले, खिलाफत की तो पछताएंगे

महिला हो या पुरुष, सभी को पति-पत्नी के संबंधों को लेकर पांच कानूनी फैसले जरूर पता होने चाहिएं। अगर इनकी खिलाफत की गई तो पछताना पड़ सकता है।

पत्नी खुद को संभालने में सक्षम है तो वह पति से गुजारे भत्ते की हकदार नहीं

फरवरी 2018 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गुजारे भत्ते को लेकर अहम आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि पत्नी खुद को संभालने में सक्षम है तो वह पति से गुजारे भत्ते की हकदार नहीं है। इस फैसले के साथ ही हाईकोर्ट ने फाजिल्का निवासी महिला की याचिका को खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए महिला ने बताया था कि उसकी शादी जून 2010 में हुई थी। जून 2011 में वह ससुराल छोड़कर वापस अपने मायके आ गई थी। याची ने कहा कि उसका पति बड़ा किसान है और इसके साथ ही उसकी डेयरी चलती है तथा फाइनेंस का काम भी है। उसका पति 1 लाख रुपये प्रतिमाह कमाता है। ऐसे में उसको पति से गुजारा भत्ता दिलवाया जाए।

याची के पति ने हाईकोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता सरकारी शिक्षक है और अक्तूबर 2011 में उसका वेतन 32 हजार रुपये था। उसकी पत्नी को पोलियो था और इस बात का खुलासा पहले नहीं किया गया था। शादी की रात में ही उसे पता चला की उसकी बीवी पोलियोग्रस्त है। उसने बताया कि पत्नी ने गुजारे भत्ते के लिए निचली अदालत में याचिका दाखिल की थी जो खारिज हो गई।

इसके बाद रिवीजन पिटीशन दाखिल की गई वह भी खारिज हो गई। अब याची ने हाईकोर्ट की शरण ली है। इसके जवाब में महिला ने कहा कि वह कमाती है, केवल इस आधार पर उसे गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी का वेतन इतना कम नहीं है कि वह अपने आप को संभाल न सके।

इसके साथ ही वह पति की कमाई एक लाख रुपये प्रतिमाह साबित करने में भी नाकाम रही। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता मामलों में केवल पति की ही नहीं, बल्कि पत्नी की आय के साधन को भी ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसे में पत्नी यह साबित करने में नाकाम रही कि वह अपने वेतन से खुद को संभालने में सक्षम नहीं है। हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ ही याचिका खारिज कर दी।

दूसरी पत्नी पहली के जीवित रहते गुजारा भत्ते की हकदार नहीं है

फरवरी 2018 में ही एक अन्य फैसले के मुताबिक, पहली पत्नी से तलाक लिए बिना पुरुष से शादी करने वाली दूसरी पत्नी पहली के जीवित रहते गुजारा भत्ते पाने की हकदार नहीं है। हालांकि दूसरी पत्नी से पैदा हुई अविवाहित संतान भत्ते की हकदार जरूर होगी।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस जय श्री ठाकुर ने यह फैसला दूसरी पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता के लिए दाखिल की गई याचिका को खारिज करते हुए दिया। रोहतक में एक तांत्रिक की सलाह पर महिला ने अपनी बड़ी बहन के पति से शादी कर ली थी। पहला बच्चा विकृति के साथ पैदा हुआ था तो तांत्रिक ने उसे सलाह दी थी कि यदि वह दूसरा विवाह कर ले तो बच्चा सामान्य पैदा होगा।

इसके बाद उसने बहन के पति से शादी कर ली। इस शादी के चलते उसे एक बेटी पैदा हुई। इस सब के बाद महिला ने गुजारा भत्ता के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। याचिका दाखिल करते हुए महिला ने कहा कि उसने बाकायदा शादी की है और इस नाते वह प्रतिवादी की पत्नी है और उससे गुजारा भत्ता की पूरी तरह से हकदार है।

जस्टिस ठाकुर ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में ‘पत्नी’ को परिभाषित नहीं किया गया है। यदि हम इसकी परिभाषा अन्य कानूनों में या सामाजिक तौर पर भी देखें तो कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के अतिरिक्त किसी भी महिला को पत्नी नहीं माना जा सकता।

हिंदू विवाह कानून की धारा 5 में बताया गया है कि यदि दोनों में से किसी का भी जीवनसाथी जीवित नहीं है, तो वे किसी दूसरे से शादी कर सकते हैं। इस प्रकार कोई भी विवाह जिसमें इस प्रावधान का उल्लंघन किया गया है, वह अमान्य होगा। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि यहां याचिकाकर्ता वह दूसरी पत्नी है, जो यह जानते हुए भी विवाह करती है कि पुरुष की पहली पत्नी जीवित है और उसने उससे तलाक भी नहीं लिया है। इसलिए वह धारा 125 के तहत तो गुजारा भत्ते ही हकदार नहीं है।

इसी के साथ जस्टिस ठाकुर ने कहा कि इस विवाह से पैदा हुई अविवाहित पुत्री गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार है। यह गुजारा भत्ता वह तब तक पाने की हकदार है जब तक उसका विवाह नहीं हो जाता या वह खुद को संभालने में समर्थ नहीं हो जाती। जस्टिस ठाकुर ने दोनों पक्षों को निर्देश दिया कि वे पुत्री को गुजारा भत्ते की राशि तय करने के लिए रोहतक फैमिली कोर्ट में पेश हों।

भले ही पत्नी के अप्राकृतिक संबंधों के आरोप साबित न हों, फिर भी तलाक मंजूर किया जा सकता है


पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया। फैसला पलटते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी के अप्राकृतिक संबंधों के आरोप साबित न हों  फिर भी परिस्थितियों को आधार बनाकर तलाक मंजूर किया जा सकता है।

ट्रायल कोर्ट ने पत्नी की उस दलील को मानने से इंकार कर दिया था जिसमें उसने कहा था कि उसका पति घिनौना व्यवहार करता है और उस पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का दबाव डालता है। ट्रायल कोर्ट ने यह दलील इसलिए नहीं मानी थी कि इसका कोई सबूत नहीं दिया गया था।

इस पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि चाहे इसका कोई सबूत न दिया जा सकता हो, लेकिन इसके अलावा भी कई अन्य परिस्थितियों पर गौर किया जाना चाहिए। इस केस में पत्नी आठ वर्ष पहले ही एक बच्चे को साथ लेकर पति से अलग हो चुकी है। कोई भी पत्नी अपने बच्चे सहित पति का घर तब तक नहीं छोड़ सकती जब तक ऐसे हालात पैदा न कर दिए गए हों।

जिला अदालत में पत्नी की जब तलाक की अर्जी विचाराधीन थी तब उसने पति से किसी भी तरह का गुजारा भत्ता नहीं मांगा और आपसी सहमति से तलाक दिए जाने का आग्रह करती रही। हाईकोर्ट ने कहा कि जिला अदालत ने इस मामले में पत्नी की इन सभी परिस्थितियों पर गौर न कर उसके तलाक की अर्जी खारिज कर दी जो कि सही नहीं है।

यह सभी परिस्थितियां इशारा करती हैं कि पत्नी के साथ पति का व्यवहार बेहद ही क्रूर था और वह न सिर्फ पत्नी दहेज़ की मांग ही करता था बल्कि अपनी पत्नी के साथ बेहद ही घिनौने तरीके से पेश आता था। इस मामले में पत्नी को शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया है लिहाजा पत्नी की तलाक की अर्जी को स्वीकार किया जाता है।

पत्नी से मारपीट ही नहीं बल्कि उसको गुजारा भत्ता देने से इनकार करना भी उसके साथ क्रूरता

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा तलाक के लिए दाखिल की गई याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि पत्नी से मारपीट ही नहीं बल्कि उसको गुजारा भत्ता देने से इनकार करना भी उसके साथ क्रूरता है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने महिला की तलाक के लिए दायर की गई याचिका को मंजूर करते हुए डिवोर्स डिक्री उसके हक में जारी कर दी। याचिका दाखिल करते हुए कपूरथला निवासी महिला ने कहा था कि उसका प्रेम विवाह 2005 में चंडीगढ़ में हुआ था।

इसके बाद कुछ समय तो सब ठीक रहा लेकिन धीरे-धीरे उसके पति और ससुराल वालों का बर्ताव बदलने लगा। विदेश जाने के लिए उससे डेढ़ लाख रुपये की मांग की गई। विवाद बढ़ा और 2007 में उसे घर से निकाल दिया गया। इसके बाद उसने तलाक के लिए याचिका दाखिल की परंतु पति के अच्छे बर्ताव के आश्वासन के बाद वह घर वापस आ गई। हालात सुधरे नहीं और उसे 2009 में फिर से घर से निकाल दिया गया। पीड़िता ने पुलिस को शिकायत दी और तलाक के लिए केस डाला लेकिन फिर शादी बचाने के लिए केस वापस ले लिया।

अब याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याची की दलीलों का विरोध करते हुए पति ने याची द्वारा परिजनों से अलग रहने के लिए दबाव बनाने और अक्सर झगड़ा करने की बात कही। साथ ही कहा कि बार-बार याचिका दाखिल की गई और वह इसकी आदी है। हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कोर्ट ने याचिका लंबित रहते पत्नी और बच्चों के गुजारे-भत्ते के लिए 5 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के आदेश दिए थे और इन आदेशों का पति ने पालन नहीं किया। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि पति पत्नी के साथ क्रूर था।

केवल मारपीट ही नहीं गुजारा भत्ता न देना भी क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी भी की। कहा गया कि महिलाओं का प्रयास रहता है कि शादीशुदा जीवन को जहां तक हो सके बचाया जाए। कारण आज भी हमारे समाज में तलाक को कलंक माना जाता है। जब परिस्थितियां बिलकुल ही बिगड़ जाएं तो ही महिला तलाक का रास्ता चुनती है। इस मामले में भी महिला ने दो बार तलाक की याचिका वापस ली है लेकिन हालात नहीं सुधरे। ऐसे में हाईकोर्ट ने तलाक की मांग को मंजूर करते हुए निचली अदालत द्वारा तलाक न देने के फैसले को खारिज कर दिया।

यदि पति भिखारी हो तो भी उसे पत्नी को उसकी हैसियत के अनुसार गुजारा भत्ता देना होगा

पत्नी को गुजारा भत्ता देने पर स्थिति स्पष्ट करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम आदेश जारी कर कहा है कि यदि पति भिखारी हो तो भी उसे पत्नी को उसकी हैसियत के अनुसार गुजारा भत्ता देना होगा। हाईकोर्ट का यह आदेश छात्र होने और परिजनों पर आश्रित होने की दलील देते हुए पत्नी को गुजारा भत्ता देने में सक्षम नहीं होने की पति की दलील को खारिज करते हुए आया है।

गुरुग्राम निवासी पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए स्थानीय अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें कोर्ट ने उसे पत्नी को 18 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने को कहा था। याची ने कहा था कि 12 मार्च 2013 को उसकी शादी हुई थी। लेकिन पत्नी का व्यवहार काफी उग्र था और एक दिन वह खुद घर छोड़कर चली गई।

हाईकोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याची बीटेक कोर्स करने की बात कहते हुए खुद को परिजनों पर आश्रित बता रहा है। वह फीस के तौर पर 60 हजार प्रति वर्ष भुगतान कर रहा है। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि वह मोटी फीस देने में सक्षम है। साथ ही शादी के समय ससुराल पक्ष ने उसे कार, गहने व अन्य सामान दिए थे। शादी पर लगभग 60 लाख खर्च हुआ था। कोई भी समृद्ध परिवार अपनी बेटी की शादी न कमाने वाले से नहीं करेगा। ऐसे में यह स्पष्ट होता है कि याची घर की आय में योगदान कर रहा था।

कोर्ट ने अपना फैसला लिखते हुए कहा कि शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्ति बिना किसी आय साधन वाली पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है। भले ही पति भीख मांगता हो तो भी वह अपनी कमाई के अनुरूप गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि पति ससुराल द्वारा दी गई आर्टिका कार को मेंटेन कर रहा है तो आखिर कैसे माना जा सकता है कि उसकी आय का कोई साधन नहीं है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने गुुरुग्राम की अदालत द्वारा 5 सितंबर 2016 को जारी आदेश में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।