जकार्ता में चल रहे 18वें एशियाई खेलों में भारत कई रिकॉर्ड बना रहा है। हॉकी के जादूगर कहे मेजर ध्यानचंद ने नाम भी कई रिकॉर्ड और दिलचस्प किस्से हैं। हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा गोल करने और भारत को ओलंपिक खेलों में गोल्ड दिलाने के कारण उनके जन्मदिन 29 अगस्त को 'नेशनल स्पोर्टस डे' मनाया जाता है। आज उनकी 113वीं जयंती है। कभी भारत के हीरे कहे जाने वाले ध्यानचंद का अंतिम समय बेहद तंगहाली में गुजरा। ध्यानचंद की फैमिली भी उनकी तरह खेल से जुड़ी रही। खुद उन्होंने देश को 3 ओलिंपिक गोल्ड मेडल जितवाए। इन तीन में से दो में उनके भाई रूप सिंह भी विनिंग टीम का हिस्सा रहे। उनके बेटे अशोक ध्यानचंद भी इंटरनेशनल प्लेयर रहे। अशोक ने वर्ल्ड कप गोल्ड समेत 7 मेडल विनिंग हॉकी टीमों का हिस्सा रहे।
जानते हैं उनके जीवन से जुड़े दिलचस्प किस्से....
जानते हैं उनके जीवन से जुड़े दिलचस्प किस्से....
पहला किस्सा - हॉकी में नहीं थी दिलचस्पी
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहबाद के एक राजपूत घराने में हुआ था। सबसे हैरान करने वाली है यह है कि बचपन में उन्हें हॉकी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। जब वे दिल्ली में ब्राह्मण रेजीमेंट में एक सिपाही बनकर भर्ती हुए तब मेजर तिवारी ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए मोटीवेट किया था। इससे वे प्रेरित हुए और अपने करियर में 1000 से ज्यादा गोल दागे। इसलिए उन्हें हॉकी का जादूगर कहा गया। ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना फैन बना दिया था।
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहबाद के एक राजपूत घराने में हुआ था। सबसे हैरान करने वाली है यह है कि बचपन में उन्हें हॉकी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। जब वे दिल्ली में ब्राह्मण रेजीमेंट में एक सिपाही बनकर भर्ती हुए तब मेजर तिवारी ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए मोटीवेट किया था। इससे वे प्रेरित हुए और अपने करियर में 1000 से ज्यादा गोल दागे। इसलिए उन्हें हॉकी का जादूगर कहा गया। ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना फैन बना दिया था।
दूसरा किस्सा: हिटलर भी बन गए फैन, दिया था जर्मनी आने का इंविटेशन
1936 में जब मेजर ध्यानंचद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने पहुंची। भारतीय टीम की भिड़ंत मेजबान जर्मनी से होनी थी। ऐसे में जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी फाइनल देखने पहुंचे थे। ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी के गोलपोस्ट पर गोल दागने शुरू किए। ऐसे में हिटलर ने ध्यानचंद की स्टिक बदलवा दी थी। इसके बाद भी भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से मात दी। मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर स्टेडियम छोड़ चुके थे क्योंकि उसे हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी लेकिन इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात करके जर्मनी आने को कहा था लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था।
1936 में जब मेजर ध्यानंचद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने पहुंची। भारतीय टीम की भिड़ंत मेजबान जर्मनी से होनी थी। ऐसे में जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी फाइनल देखने पहुंचे थे। ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी के गोलपोस्ट पर गोल दागने शुरू किए। ऐसे में हिटलर ने ध्यानचंद की स्टिक बदलवा दी थी। इसके बाद भी भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से मात दी। मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर स्टेडियम छोड़ चुके थे क्योंकि उसे हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी लेकिन इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात करके जर्मनी आने को कहा था लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था।
तीसरा किस्सा : जीत पर शक हुआ तो तुड़वाई गई हॉकी स्टिक
29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद के बारे में ऐसा कहा जाता था कि जब भी बॉल उनकी हॉकी स्टिक पर आती थी तो चिपक जाती थी और उनसे दूर ही नहीं होती थी। मेजर बॉल अपने पास रखने में इतने माहिर थे कि एक बार हॉलैंड में एक मैच के दौरान कुछ लोगों को शक हुआ कि मेजर की हॉकी में चुंबक लगा हुआ है जिसके कारण उनकी हॉकी तुड़वा कर देखी गई थी। उन्हें शक था कि कहीं हॉकी में चुंबक या गोंद तो नहीं लगा हुआ है।
29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद के बारे में ऐसा कहा जाता था कि जब भी बॉल उनकी हॉकी स्टिक पर आती थी तो चिपक जाती थी और उनसे दूर ही नहीं होती थी। मेजर बॉल अपने पास रखने में इतने माहिर थे कि एक बार हॉलैंड में एक मैच के दौरान कुछ लोगों को शक हुआ कि मेजर की हॉकी में चुंबक लगा हुआ है जिसके कारण उनकी हॉकी तुड़वा कर देखी गई थी। उन्हें शक था कि कहीं हॉकी में चुंबक या गोंद तो नहीं लगा हुआ है।
चौथा किस्सा : ऐसे हॉकी का हीरो बना 'मेजर'
1927 ई. में ध्यानचंद लांस नायक बनाए गए। 1932 में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। 1937 में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। 1943 में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन् 1948 में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद वो लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए और बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।
1927 ई. में ध्यानचंद लांस नायक बनाए गए। 1932 में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। 1937 में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। 1943 में 'लेफ्टिनेंट' नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर सन् 1948 में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें 'वायसराय का कमीशन' मिला और वे सूबेदार बन गए। उसके बाद वो लेफ्टीनेंट और कैप्टन बनते चले गए और बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया।
पांचवा किस्सा : जर्मनी जाने से पहले करा दी गई थी शादी
DainikBhaskar.com से बातचीत के दौरान मेजर ध्यानचंद की बहू मीना सिंह ने उनसे जुड़ी काफी बातें शेयर कीं। मीना ध्यानचंद के पांचवें नंबर के बेटे उमेश की पत्नी हैं। मीना बताती हैं, "हमारे दादाजी सोमेश्वर दत्त और दादी श्रद्धा सिंह इलाहाबाद में रहते थे। पिताजी के दो और भाई थे- मूलचंद (ताऊजी) और रूप सिंह (चाचाजी)। पिताजी चाचा रूप सिंह के साथ हॉकी खेलते थे। दोनों ने इंटरनेशनल लेवल पर देश को रिप्रेजेंट किया।" मीना ने बताया, "साल 1936 में बाबूजी को ओलिंपिक के लिए बर्लिन, जर्मनी जाना था। उसी ओलिंपिक के दौरान उनकी मुलाकात हिटलर से हुई थी। जाने से पहले दादाजी ने उनकी शादी मां (जानकी देवी) से करवा दी थी। मां उनके लिए लकी रहीं और उन्होंने लगातार तीसरे ओलिंपिक में देश को गोल्ड मेडल जितवाया।"
DainikBhaskar.com से बातचीत के दौरान मेजर ध्यानचंद की बहू मीना सिंह ने उनसे जुड़ी काफी बातें शेयर कीं। मीना ध्यानचंद के पांचवें नंबर के बेटे उमेश की पत्नी हैं। मीना बताती हैं, "हमारे दादाजी सोमेश्वर दत्त और दादी श्रद्धा सिंह इलाहाबाद में रहते थे। पिताजी के दो और भाई थे- मूलचंद (ताऊजी) और रूप सिंह (चाचाजी)। पिताजी चाचा रूप सिंह के साथ हॉकी खेलते थे। दोनों ने इंटरनेशनल लेवल पर देश को रिप्रेजेंट किया।" मीना ने बताया, "साल 1936 में बाबूजी को ओलिंपिक के लिए बर्लिन, जर्मनी जाना था। उसी ओलिंपिक के दौरान उनकी मुलाकात हिटलर से हुई थी। जाने से पहले दादाजी ने उनकी शादी मां (जानकी देवी) से करवा दी थी। मां उनके लिए लकी रहीं और उन्होंने लगातार तीसरे ओलिंपिक में देश को गोल्ड मेडल जितवाया।"
शायरी के शौकीन थे ध्यानचंद
मीना बताती हैं, "मैं जब शादी करके आई तो मुझे बाबूजी की पुरानी डायरी मिली, जिसमें वो 1968 से लगातार लिख रहे थे। उस डायरी ने उनकी पर्सनालिटी से जुड़ी काफी बातें उजागर की। बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वे शायरी का भी शौक रखते थे। उन्होंने डायरी में इस बात का जिक्र किया। "उनकी फेवरेट एक्ट्रेस हेमा मालिनी और जरीना वहाब थीं। उन्होंने इन दोनों के लिए शायरी भी लिखी थी। बाबूजी ने हेमा मालिनी के लिए लिखा है- नाज था जिस पर मोहब्बत में साथ देंगे, गुजरे जब सामने से तो अजनबी से थे।"
मीना बताती हैं, "मैं जब शादी करके आई तो मुझे बाबूजी की पुरानी डायरी मिली, जिसमें वो 1968 से लगातार लिख रहे थे। उस डायरी ने उनकी पर्सनालिटी से जुड़ी काफी बातें उजागर की। बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वे शायरी का भी शौक रखते थे। उन्होंने डायरी में इस बात का जिक्र किया। "उनकी फेवरेट एक्ट्रेस हेमा मालिनी और जरीना वहाब थीं। उन्होंने इन दोनों के लिए शायरी भी लिखी थी। बाबूजी ने हेमा मालिनी के लिए लिखा है- नाज था जिस पर मोहब्बत में साथ देंगे, गुजरे जब सामने से तो अजनबी से थे।"
फैमिली का कोई सदस्य अमेरिका में कर रहा पढ़ाई तो कोई फैशन में नाम रोशन कर रहा
देश को ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल जिताने के बावूजद ध्यानचंद गरीबी में जिए। अंतिम समय में उनके पास दवा के पैसे भी नहीं थे। इन सब स्ट्रगल के बावजूद उन्होंने अपने 11 बच्चों को ऐसे संस्कार दिए कि वो आज किसी के मोहताज नहीं। ध्यानचंद की फैमिली का कोई सदस्य अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है, तो कोई फैशन की दुनिया में कमाल कर रहा है। ध्यानचंद के कुल 11 बच्चे थे, जिनमें से तीन अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके 7 बेटे (बृजमोहन, सोहन सिंह, राजकुमार, अशोक कुमार, उमेश कुमार, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह) और 4 (विद्यावती, राजकुमारी, आशा सिंह और ऊषा सिंह) बेटियां थीं।
देश को ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल जिताने के बावूजद ध्यानचंद गरीबी में जिए। अंतिम समय में उनके पास दवा के पैसे भी नहीं थे। इन सब स्ट्रगल के बावजूद उन्होंने अपने 11 बच्चों को ऐसे संस्कार दिए कि वो आज किसी के मोहताज नहीं। ध्यानचंद की फैमिली का कोई सदस्य अमेरिका में पढ़ाई कर रहा है, तो कोई फैशन की दुनिया में कमाल कर रहा है। ध्यानचंद के कुल 11 बच्चे थे, जिनमें से तीन अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके 7 बेटे (बृजमोहन, सोहन सिंह, राजकुमार, अशोक कुमार, उमेश कुमार, देवेंद्र सिंह और वीरेंद्र सिंह) और 4 (विद्यावती, राजकुमारी, आशा सिंह और ऊषा सिंह) बेटियां थीं।